शनिवार, 12 सितंबर 2009

पटेल से हुए पस्त

‘जिन्ना : इंडिया, पार्टिशन, इंडिपेंडेंसज् लिखकर सुर्खियों में आए भाजपा के पूर्व वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह ने सोचा भी नहीं होगा कि एक पुस्तक लिखने का खामियाजा उन्हें पार्टी से निष्कासित होकर चुकाना होगा। भाजपा की कट्टर दक्षिणपंथी नीति से अलग वह अपनी एक अलग उदार लोकतांत्रिक सोच के लिए जाने जाते रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबद्ध नहीं होने के बावजूद उन्होंने पार्टी के शीर्ष नेताओं में अपनी जगह बनाई और तीन प्रमुख मंत्रालयों को संभालने की जिम्मेदारी निभाई। हालांकि इस बीच समय-समय पर विवाद भी उनसे जुड़ते रहे हैं।

या यूं कहें कि विवादों का उनसे चोली-दामन का संबंध रहा। लेकिन जिन्ना पर लिखी पुस्तक से पैदा हुए ताजा विवाद ने भाजपा से उनके निष्कासन का रास्ता बना दिया।
पार्टी को यह बात नागवार गुजरी कि उसका ही नेता आखिर कैसे भारत विभाजन के लिए जिन्ना को जिम्मेदार नहीं ठहराते हुए उन्हें धर्मनिरपेक्ष बता सकता है! पार्टी के लिए इससे भी बड़ा झटका यह रहा कि जसवंत ने उनके आदर्श देश के पहले गृहमंत्री लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत-विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। जसवंत ने अपनी पुस्तक ‘जिन्ना : इंडिया, पार्टिशन, इंडिपेंडेंसज् में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू व सरदार वल्लभ भाई की अत्यधिक कें्रीकृत नीति को भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार माना है। पार्टी का कहना है कि पुस्तक में ऐसे आठ संदर्भो की चर्चा है, जिससे पटेल का अपमान होता है। हालांकि जसवंत बार-बार पटेल के अपमान संबंधी आरोप से इनकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि उन्हें निष्कासित करने से पहले पार्टी के नेताओं ने उनकी पुस्तक पढ़ी भी नहीं, क्योंकि पुस्तक में ऐसा कोई संदर्भ नहीं है।
राजस्थान के बाड़मेर जिले में 3 जनवरी 1938 को पैदा हुए जसवंत सिंह का संबंध कभी भाजपा के दूसरे नेताओं की तरह आरएसएस से नहीं रहा और शायद इसलिए उन्होंने संघ के तौर-तरीकों व सोच को नहीं अपनाया। वह मेयो कॉलेज व राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के छात्र रह चुके हैं। एक लंबा वक्त उन्होंने सेना में बिताया और शायद इसलिए वह अब भी कह रहे हैं कि उन्होंने सेना से काफी कुछ सीखा, संघ से नहीं और यह भी कि वह स्वयंसेवक नहीं हैं।
1980 में 42 साल की उम्र में उन्होंने राजनीति में कदम रखा। संघ से संबंध नहीं रखने के बावजूद वह तेजी से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में शामिल हो गए। 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की 13 दिन की सरकार बनी थी, जसवंत सिंह वित्त मंत्री बनाए गए। दोबारा 1998 में राजग के सत्ता में आने के बाद वह विदेश मंत्री बने। तहलका प्रकरण में नाम आने के बाद जब तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीज को इस्तीफा देना पड़ा, तो जसवंत को रक्षा मंत्रालय का प्रभार भी दिया गया। 2002 में ही वित्त मंत्रालय का कार्यभार यशवंत सिन्हा से लेकर उन्हें दिया गया और विदेश मंत्रालय का यशवंत सिन्हा को।
इस बीच विवादों ने कभी उनका साथ नहीं छोड़ा। रक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने दिसम्बर 1999 में इंडियन एयरलाइंस के अपहृत विमान आईसी 814 के यात्रियों के बदले तीन खूंखार आतंकवादियों को कांधार ले जाकर छोड़ा था। आतंकवादियों से इस कदर नरमी से निपटने के लिए राजग सरकार की खूब आलोचना हुई और एक रक्षा मंत्री के रूप में जसवंत सिंह की भी।
2004 में भाजपा के लोकसभा चुनाव हारने के बाद जसवंत ने अपने गृह राज्य राजस्थान का रुख किया। हालांकि इससे पहले वह कभी राज्य की राजनीति में सक्रिय नहीं रहे, लेकिन अब की सक्रियता ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से उनके संबंधों में खटास पैदा कर दी। आम चुनाव से पहले उन्होंने अपने बेटे मानवें्र को बाड़मेर से पार्टी का टिकट दिलाने की पूरी कोशिश की, जबकि वसुंधरा की पसंद गंगाराम चौधरी थे। वसुंधरा के खिलाफ जसवंत की राजनीतिक लड़ाई यहीं खत्म नहीं हुई। मई 2007 में जसवंत की पत्नी ने एक स्थानीय विधायक पर वसुंधरा को देवी के रूप में चित्रित करने का आरोप लगाया, तो कुछ ही दिनों बाद वसुंधरा समर्थकों ने एक ऐसा वीडियो ढूंढ निकाला, जिसमें जसवंत स्थानीय लोगों को अफीम परोसते दिखे। मीडिया में यह खबर फैली तो जसवंत ने इसे परंपरा का नाम दे दिया। लेकिन इस मामले में पुलिस केस हो गया और पार्टी हाईकमान के हस्तक्षेप के बाद ही मामला सुलझ सका।
इससे पहले 2006 में अपनी एक अन्य पुस्तक ‘अ कॉल टू ऑनरज् से भी वह सुर्खियों में आए थे। तब उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के कार्यकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय में जासूस होने और उसके द्वारा अमेरिका को महत्वपूर्ण सूचनाएं लीक करने की बात कहकर राजनीतिक हलके में तूफान ला दिया था। हालांकि लाख पूछे जाने के बावजूद उन्होंने जासूस का नाम नहीं बताया। स्वाभाविक रूप से कांग्रेस ने इस पर कड़ा रुख अपना लिया था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब उनसे जवाब मांगा तो पीएमओ को भेजी चिट्ठी में उन्होंने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि पीएमओ में अमेरिकी जासूस होने की बात उन्होंने केवल शक के आधार पर कही थी।
जसवंत सिंह अक्सर बेबाकी से अपनी बात रखने के लिए भी जाने जाते हैं। हाल ही संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद उन्होंने एक खुली चिट्ठी लिखी, जिसमें पार्टी की हार के लिए चुनाव की रणनीति बनाने वालों को जिम्मेदार ठहराया गया। उन्होंने साफ कहा कि दिल्ली के एसी कमरों में बैठे रहने वालों नेताओं को जमीनी स्तर पर जनता से जुड़े मुद्दों की जानकरी नहीं थी और इसलिए उनकी बनाई हुई रणनीति हवाई साबित हुई और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। पार्टी अध्यक्ष से लेकर कई नेताओं ने जसवंत की इस खुली चिट्ठी पर आपत्ति जताई थी और कहा कि यदि उन्हें कोई शिकायत थी, तो पहले पार्टी में बात करनी चाहिए थी।
इससे पहले लाल कृष्ण आडवाणी की पुस्तक ‘माय कंट्री, माय लाइफज् के बाजार में आने के बाद भी वह सुर्खियों में थे। आडवाणी ने विमान अपहरण कांड से खुद को अलग करते हुए पुस्तक में लिखा है कि उन्हें आतंकवादियों को छोड़ने के बारे में लिए गए सरकार के निर्णय की जानकारी नहीं थी। लेकिन जसवंत सिंह ने यह कहकर उन्हें सकते में डाल दिया कि इस बारे में निर्णय के लिए बुलाई गई मंत्रिमंडल की बैठक में आडवाणी भी मौजूद थे।

0 टिप्पणियाँ: