शनिवार, 12 सितंबर 2009

सब सुनो भागवत!

भाजपा में जब घमासान मचा हुआ था। उसके नेता खुलेआम उसे लताड़ रहे थे, नसीहतें दे रहे थे। आडवाणी और राजनाथ सिंह सहित सभी नेता निशाने पर थे। कलह लगातार कर्कश हो रही थी, तभी नागपुर से दिल्ली आए सर संघचालक मोहन भागवत। तीन दिन सबसे मिले। प्रेस कांफ्रेंस की और संदेश दिया- सुधर जाओ। लड़ो-झगड़ो नहीं। युवाओं को आगे लाओ। अलग-अलग और एक साथ उनसे बड़े-छोटे सब भाजपायी मिले। भाजपा कलह-शांति के लिए भागवत कथा का असर भी हुआ।

सर संघचालक मोहन राव भागवत की कुछ विशेषताएं : संघ के सबसे युवा प्रमुख। युवाओं को आगे लाने और जम्मेदारी देने के समर्थक। संगठनात्मक मजबूती के लिए आधुनिकता व परिवर्तन के समर्थक। लेकिन ‘मूल विचारधारा से कोई समझौता नहींज् के पैरोकार। उन्हें किसी भी अनुषांगिक संगठन का विचारधारा से भटकाव मंजूर नहीं। इसलिए यदि संघ का कोई परिवारी विचारधारा से भटक गया हो, तो उसे राह पर लाने की पुरजोर कोशिश करना।
भागवत के संघ प्रमुख बनते ही स्पष्ट हो गया था कि संघ और इसके संगठनों में आमूल-चूल परिवर्तन होने वाला है। यह भी साफ था कि वह परिवार में संघ की सर्वोपरिता चाहते हैं, ठीक वैसे ही जसे कभी जनसंघ के समय थी। आम तौर पर संघ प्रमुख मीडिया से कम ही मुखातिब होते हैं। लेकिन इस परंपरा से अलग भागवत ने अपनी बात कहने के लिए मीडिया को माध्यम बनाया। संवाददाता सम्मेलनों के जरिए परिवार के संगठनों को संदेश दिया कि युवाओं को आगे लाओ। समय के साथ चलने के लिए आधुनिकता अपनाओ। लेकिन विचारधारा से कोई समझौता न करो। अन्यथा हश्र वही होगा, जो विवेकानंद कें्र का हुआ। विवेकानंद कें्र, जो कभी परिवार का हिस्सा था, लेकिन अंदरूनी लड़ाई-झगड़े व विचारधारा से भटकाव के चलते आज परिवार से बाहर है। आज कें्र की लगातार कोशिश है कि उसे परिवार में शामिल कर लिया जाए, लेकिन परिवार उसे अपनाने को तैयार नहीं।
लोकसभा चुनाव से ऐन पहले भागवत संघ प्रमुख बने थे। बुजुर्ग संघ प्रमुख केसी सुदर्शन ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर अवकाश ले लिया था। उनके संघ प्रमुख बनते ही यह भी साफ हो गया था कि संघ की राजनीतिक शाखा भाजपा के साथ संबंधों को वह नए सिरे से परिभाषित करेंगे। यह वह वक्त था जब भाजपा सत्ता में वापसी की तैयारी कर रही थी। कहा गया कि लोगों को एकजुट करने की क्षमता के धनी भागवत की सर संघचालक के रूप में ताजपोशी से चुनाव में भाजपा को मदद मिलेगी। चुनाव हुए। परिणाम आया। पार्टी बुरी तरह पराजित हुई। और फिर, पार्टी में घमासान। भाजपा की इस दुर्दशा से पितृ संगठन संघ का चिंतित होना स्वाभाविक था। पार्टी की दुर्दशा के लिए भागवत को एक वजह युवा नेतृत्व का अभाव दिखा। कई मौकों पर उन्होंने पार्टी को इसके संकेत भी दिए। लेकिन पार्टी इसे अनसुना करती गई। शिमला में चिंतन बैठक से पहले भी उन्होंने भाजपा में युवाओं को आगे लाने का मुद्दा छेड़ा। कहा, नेतृत्व युवाओं को सौंपा जाना चाहिए। बुजुर्गो को सलाहकार की भूमिका अदा करनी चाहिए। लेकिन एकबार फिर उनकी बात अनसुनी कर दी गई। चिंतन बैठक में इस पर चर्चा तक नहीं हुई।
इसी बीच जिन्ना का जिन्न एकबार फिर बाहर आया और पार्टी के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह निष्कासित कर दिए गए। उधर, राजस्थान में वसुंधरा राजे और उत्तराखंड में भुवन चं्र खंडूरी ने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल लिया। हर तरफ से पार्टी को गर्त में जाता देख वरिष्ठ नेता अरुण शौरी ने संघ से गुहार लगाई, भाजपा को बचा लो। आखिर कब तक संघ चुपचाप देखता रहता। सर संघचालक को आगे आना पड़ा। दिल्ली में संवाददाता सम्मेलन बुलाया। लगभग सवा घंटे तक कथावाचक की तरह बोलते रहे। माना कि भाजपा रसातल की ओर जा रही है। लेकिन उम्मीद भी जताई कि इन सबसे उबरकर जल्द ही पार्टी ‘राख से उठ खड़ी होगी।ज् लेकिन जब भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन की बात आई, तो एक मंङो हुए राजनीतिज्ञ की तरह उन्होंने कहा, इसका फैसला पार्टी को ही करना है। संघ इसमें किसी तरह की दखलअंदाजी नहीं करेगा और न ही बिन मांगी सलाह देगा। लेकिन यह कहकर बहुत कुछ कह दिया कि संघ ने अपने सक्रिय स्वयंसेवकों की उम्र 55-60 वर्ष तय की है। जहां तक भाजपा का सवाल है, उसे भी सक्रिय राजनीति में नेताओं की उम्र खुद ही तय करनी है। इसके अतिरिक्त, राम मंदिर के प्रति प्रतिबद्धता जताकर उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि भाजपा का मूल विचारधारा से भटकाव संघ को मंजूर नहीं।
संघ प्रमुख के संवाददाता सम्मेलन से पहले और उसके बाद जिस तरह भाजपा नेताओं में हड़कंप देखा गया, वरिष्ठ व प्रमुख नेताओं ने संघ प्रमुख से मिलने के लिए जो भागमभाग की, उससे भागवत के ना-ना करते भी यह जहिर हो गया कि भाजपा संघ के भारी दबाव में है। संघ और भाजपा एक-दूसरे के असर से बचने की हमेशा दलील देते रहे हैं। पर भागवत के दिल्ली के तीन दिन इस भ्रम को तोड़ने वाले थे। पूरी पार्टी संघ की शरण में थी। भागवत शायद पहले संघ प्रमुख होंगे, जिन्होंने भाजपा की ऐसे खुलेआम क्लास लगाई और दोनों के संबंधों पर से पर्दा उठा दिया। लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली का केशव कुंज पहुंचना इस बात के साफ संकेत हैं कि संघ प्रमुख संवाददाता सम्मेलन में भले ही कुछ भी कहें, अंदर कोई बड़ी खिचड़ी पक रही है और संघ ‘बिल्कुल चुपज् नहीं है। दरअसल, एक मजबूत भाजपा संघ के उद्देश्यों को भी पूरा करती है। शायद यही वजह है कि पार्टी को इस संकट से उबारने के लिए संघ ने सौ दिन की कार्ययोजना बनाई है। इस बीच संघ प्रमुख पूरे देश का दौरा करेंगे और संघ सहित इसके संगठनों की जड़ें मजबूत बनाने की कोशिश करेंगे। तब तक भाजपा को नेतृत्व का मसला सुलझा लेने के लिए कहा गया है।
59 वर्षीय भागवत मूलत: महाराष्ट्र के चं्रपुर जिले से आते हैं। आरएसएस से जुड़ाव उन्हें पारिवारिक विरासत में मिली। पिता मधुकर भागवत आरएसएस के चं्रपुर जोन के प्रमुख थे। बाद में वह गुजरात में प्रांत प्रचारक रहे। कहा जाता है कि इसी दौरान उन्होंने लाल कृष्ण आडवाणी को संघ से जोड़ा। तीन भाई और एक बहन में सबसे बड़े भागवत ने चं्रपुर से ही स्कूली शिक्षा पूरी की व विज्ञान में स्नातक हुए। बाद में उन्होंने अकोला स्थित पुंजाबराव कृषि विश्वविद्यालय से पशु चिकित्सा में स्नातक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने मास्टर डिग्री में दाखिला लिया, लेकिन 1975 के अंत में आपातकाल के समय बीच में ही पढ़ाई छोड़ वह आरएसएस के पूर्णकालिक स्वयंसेवक बन गए। तब से लगातार वह संघ की गतिविधियों में सक्रिय रहे और विभिन्न जिम्मेदारियों को निभाते हुए आज सर संघचालक हैं।

0 टिप्पणियाँ: