यूपीए-दो का एक साल पूरा हो गया। तमाम मुद्दों पर विपक्ष ने सरकार को घेरा, लेकिन सबसे ज्यादा हंगामा संचार मंत्री ए राजा के 2जी स्पेक्ट्रम का लाइसेंस निजी कंपनियों को देने पर यह कहकर हुआ कि इससे सरकार को करोड़ों का चूना लगा। यूपीए अपने तमाम वाचाल मंत्रियों से साल भर परेशान रही, पर उससे ज्यादा इस चुप्पा मंत्री से। राजा जितना हंगामा कराएं, उनका बाल भी बांका नहीं हो सकता, क्योंकि वे सहयोगी दल ्रमुक के सदस्य ही नहीं, उसके सुप्रीमो करुणानिधि के करीबी भी हैं।
हाल के दिनों में यूपीए सरकार अपने मंत्रियों के बड़बोलेपन के कारण खूब सुर्खियों में रही। कभी अपनी ही पार्टी कांग्रेस के मंत्रियों ने सरकार को अपनी इस आदत से पसोपेश में डाला तो कभी गठबंधन के सहयोगी दलों के मंत्रियों ने। ऐसे ही एक मंत्री हैं यूपीए के एक अहम सहयोगी दविड़ मुनेत्र कषगम के सांसद ए राजा। पूरा नाम अंदिमुथु राजा है, लेकिन जाने जाते हैं ए राजा के नाम से। कें्र में संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालते हैं। लेकिन यूपीए सरकार का यह मंत्री अपने बड़बोलेपन से नहीं, बल्कि अपनी खामोशी से चर्चा में है। स्पेक्ट्रम घोटला सरकार के गले की फांस बन गया, लेकिन मंत्री जी कुछ न बोले। विपक्ष ने संसद नहीं चलने दी, जमकर का हंगामा किया, लेकिन मंत्री जी फिर भी कुछ न बोले। अधिक पूछो तो केवल ‘नो कमेंटज् जसा छोटा सा कमेंट कर निकलते बनते हैं।
अब तक के सबसे बड़े घोटाले स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर मंत्रीजी काफी दिनों से सुर्खियों में हैं। आरोप है कि वर्ष 2008 में निजी कंपनियों को 2जी (सेकंड जेनेरेशन) का लाइसेंस आवंटित कर उन्होंने सरकार को करोड़ों का चूना लगाया। इन कंपनियों को 2जी का आवंटन वर्ष 2001 की दरों पर किया गया और इसके लिए बोली भी नहीं लगाई गई, बल्कि ‘पहले आओ, पहले पाओज् के आधार पर मंत्री जी ने रेवड़ियों के भाव लाइसेंस का आवंटन निजी कंपनियों को कर दिया। इससे सरकार को 22 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होने की बात कही जा रही है, जबकि विपक्षी भाजपा इसे 60 हजार करोड़ रुपए बताती है। सीबीआई ने मामला भी दर्ज कर लिया है। कें्रीय सतर्कता आयोग और लेखा एवं महानियंत्रक परीक्षक भी मामले की जांच कर रखा है। आरोप है कि 2जी आवंटन में मंत्री महोदय ने दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नियमों व अनुशंसाओं की भी अनदेखी की। उन सभी कंपनियों को दरकिनार कर उन्होंने निजी कंपनियों को लाइसेंस का आवंटन किया, जिसकी अनुशंसा ट्राई ने की थी।
सीबीआई ने मामले की जांच के दौरान दूरसंचार विभाग के दफ्तर में छापे भी मारे और कई अधिकारियों से इस सिलसिले में पूछताछ की। जाहिर तौर पर पूरे प्रकरण ने विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा थमा दिया। घोटाले और दूरसंचार विभाग के दफ्तर में छापेमारी को मुद्दा बनाकर विपक्ष लगातार उनके इस्तीफे की मांग कर रहा है। विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाकर संसद में कामकाज ठप कर दिया। लेकिन मंत्री महोदय ने सबको ठेंगा दिखा दिया। कहा, इस्तीफे का सवाल ही नहीं उठता। हालांकि यह मुद्दा सरकार के गले की फांस बन गया। विपक्ष ने संसद में कामकाज ठप कर दिया, लेकिन सरकार ने अपने एक अहम सहयोगी दल के इस मंत्री पर हाथ डालना मुनासिब नहीं समझा। इसकी वजह निश्चय ही डीएमके का एक बड़ा संख्या बल है, जिसके 18 सांसदों के जाने से सरकार की स्थिरता पर असर पड़ सकता है।
यूपीए सरकार में राजा दूसरी बार संचार मंत्री बने हैं। इससे पहले 2007 में उन्होंने संचार मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली थी। तब उन्होंने देश के कोने-कोने में जनता को सस्ती दरों पर टेलीफोन सुविधा मुहैया कराने का वादा किया था। काफी हद तक उन्होंने इसमें कामयाबी भी हासिल की, लेकिन स्पेक्ट्रम घोटाले ने उनकी तमाम उपलब्धियों पर ग्रहण लगा दिया। राजा जनता को दस पैसे की दर पर एसटीडी सुविधाएं मुहैया कराने की बात कह रहे हैं। इसमें वे कहां तक कामयाब होंगे, यह आने वाले दिनों में ही साफ हो पाएगा।
राजा तमिलनाडु में नीलगिरि संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे तीसरी बार सांसद निर्वाचित हुए हैं। पार्टी सुप्रीमो करुणानिधि के करीबी हैं, इसलिए भी कें्र ने उनके खिलाफ कोई कदम उठाने से परहेज किया, क्योंकि राजा के खिलाफ कार्रवाई का मतलब था, ्रमुक सुप्रीमो को नाराज करना, जिन्होंने काफी मोल-तोल के बाद दूसरी बार यूपीए सरकार को समर्थन देने पर सहमति जताई। हाल में करुणानिधि जब दिल्ली आए तब उन्होंने भी राजा के इस्तीफे से इनकार कर इस सिलसिले में उठ रहे शोर को दबा दिया। उन्होंने कहा कि राजा दलित हैं, इसलिए उनका विरोध हो रहा है।
राजा दक्षिण के राज्यों में उसी दलित राजनीति का हिस्सा हैं, जिसका उदय पेरियार के नेतृत्व में हुआ और जिसके बाद ऊंची जातियों की राजनीति वहां हाशिये पर चली गई। लेकिन घोटाले के आरोप से घिरा यह मंत्री दलितों के कम ‘दलित राजनीतिज् के अधिक करीब लगता है।
वैसे यह पहला मौका नहीं है, जब राजा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा। इससे पहले उन पर म्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को प्रभावित करने का आरोप भी लग चुका है। कहा गया कि उन्होंने एक डॉक्टर की अग्रिम जमानत को लेकर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को प्रभावित करने का प्रयास किया, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे। तब भी राजा ने अपने स्वाभानुसार बार-बार पूछे जाने पर भी केवल इतना कहा, ‘मैं सभी आरोपों से इनकार करता हूं। इस बारे में मैं कुछ नहीं जानता।ज्
राजा तब भी सुर्खियों में आए थे, जब वर्ष 2008 में श्रीलंका ने तमिल व्रिोहियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू की थी। कार्रवाई में तमिल नागरिकों के प्रभावित होने की बात कह ्रमुक के नेताओं ने कें्र पर इस बात के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह श्रीलंका सरकार से तमिल नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कहे। दबाव की इस रणनीति के तहत पार्टी के 14 सांसदों ने इस्तीफा दे दिया, जिसमें राजा भी शामिल थे। लेकिन यह इस्तीफा राजनीतिक खेल का एक हिस्सा था। सांसदों ने इस्तीफा अपने पार्टी सुप्रीमो को सौंपा था और इसमें तिथि भी बाद की लिखी थी।
सोमवार, 24 मई 2010
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1 टिप्पणियाँ:
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