सोमवार, 8 मार्च 2010

एक मकसद मुइवा


थुइंगलेंग मुइवा नगा जनजातियों के नेता हैं। उन पर लोगों का जबरदस्त भरोसा है। वे प्रतिबंधित नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम के इसाक-मुइवा धड़े के महासचिव हैं। कई दशकों से वे वृहत्तर नगालैंड के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इससे कम पर वे राजी नहीं। वे गांधी और अहिंसा को आदर्श मानते हैं, लेकिन अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने हथियार उठाए। उनका यकीन माननवाधिकारों पर है, लेकिन उनके संगठन के हाथों मारे जाने वाले भारतीय फौजियों को वे इसकी परिधि से बाहर रखते हैं। उन्हें संतोष है कि भारत सरकार भी अब उनकी ताकत और उनके जज्बे को भांपकर समझने लगी है कि इस मामले का समाधान सैनिक कार्रवाई से नहीं हो सकता।

थुइंगलेंग मुइवा, प्रतिबंधित संगठन नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन) के इसाक-मुइवा (आईएम) धड़े के महासचिव हैं। एनएससीएन-आईएम, जो उत्तर-पूर्वी राज्यों में पिछले करीब छह दशक से वृहत्तर नगालैंड की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहा है। मुइवा नगा जनजातियों के सर्वाधिक विश्वसनीय नेता हैं। उन पर लोगों को भरोसा है कि वे उनकी संप्रभुता की मांग से कोई समझौता नहीं करेंगे। संप्रभुता भी वृहत्तर नगालैंड की, जिसमें नगालैंड के अलावा आसपास के राज्यों और म्यांमार में रहने वाले नगा जनजाति के लोग भी शामिल होंगे।
मुइवा को नगा स्वतंत्रता और संप्रभुता से कम कुछ भी स्वीकार नहीं। वे न खुद को और न ही नगा लोगों को भारत का हिस्सा मानते हैं। इसलिए उनका विश्वास भारतीय लोकतंत्र में भी नहीं है, हालांकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनका यकीन है। नगालैंड में उनकी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ नगालैंड नाम से समानांतर सरकार है, जो नगा जनजातियों के लिए सभी प्रशासनिक कामकाज देखती है। यह सरकार जनता से टैक्स भी वसूलती है और उससे उनके लिए सुविधाएं जुटाती है। वे नगा स्वाधीनता के लिए भारत सरकार अधिनियम, 1935 का हवाला देते हैं, जिसमें नगा हिल्स को ब्रिटिश इंडिया से बाहर रखने की बात कही गई थी।
मुइवा, जो महात्मा गांधी को पढ़ते हुए बड़े हुए और उनके अहिंसा व सविनय अवज्ञा आंदोलन जसे सिद्धांतों को आदर्श बताते हैं, लेकिन नगा समस्या के समाधान के लिए इन्हें कारगर नहीं मानते। यही वजह रही कि उन्होंने हथियार उठा लिया और लोगों को भारतीय सेना के खिलाफ लामबंद किया। उनका कहना है कि नगा स्वभाव से शांति प्रिय लोग हैं, लेकिन भारत सरकार ने नगालैंड में सेना भेजकर जो दमनचक्र चलाया, उसके बाद लोगों के पास हथियार उठाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं रह गया। मुइवा आज भी गांधी के उस आश्वासन को याद करते हैं, जो उन्होंने नगा स्वतंत्रता के पक्ष में दिया था और जिससे लोगों को भरोसा हो चला था कि इस समस्या का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से निकाला जाएगा। लेकिन उनकी हत्या के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने शांतिपूर्ण समाधान के सभी रास्ते बंद कर दिए। वहां सेना भेज दी गई, लोगों के घर जला दिए गए, महिलाओं की अस्मत पर हमला हुआ, जिसके बाद लोगों को जंगलों में भागकर जान बचानी पड़ी। ऐसे ही लोगों में मुइवा का परिवार भी था।
यहीं से शुरू हुआ मुइवा का संघर्ष। नगा स्वतंत्रता का संघर्ष, नगा जनजातियों के लिए सम्मान का संघर्ष, आत्म निर्णय का संघर्ष। जब सेना के कहर से उनके परिवार को जंगल का रुख करना पड़ा, मुइवा की उम्र बहुत छोटी थी। लेकिन इस घटनाक्रम ने किशोर मुइवा के मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ी। अन्य नगा जनजातीय परिवारों की भांति ही उनका परिवार भी गरीबी से जूझ रहा था। माता-पिता अशिक्षित थे, लेकिन ईसाई धर्म में उनकी गहरी आस्था थी, जिससे उन्हें हर संकट से उबर जाने की ताकत मिलती रही। मुइवा माता-पिता से ईसा मसीह की कहानियां सुनकर बड़े हुए। इन कहानियों ने किशोर मुइवा के मन पर अमिट छाप छोड़ी। क्रिश्चनिटी में उनकी आस्था इतनी गहरी हो गई कि ‘नगालिम फॉर क्राइस्टज् और ‘नगालैंड फॉर क्राइस्टज् उनके आंदोलन का नारा बन गया।
इस बीच, उन्होंने गांधी, माओत्से तुंग, मार्क्स, लेनिन सहित दुनिया के कई बड़े नेताओं को पढ़ा। उनके दर्शन को समझा, जिससे सेना के दमन के खिलाफ और नगालैंड की स्वतंत्रता के लिए उनके संघर्ष को बल मिलता रहा। मुइवा आज करीब 68 साल के हो चुके हैं, लेकिन उनका संघर्ष अब भी खत्म नहीं हुआ है। नगालैंड के लिए संघर्ष करते हुए उन्होंने अपने जीवन के 27 साल जंगलों में बिता दिए। पिछले करीब तीन साल से वे भारत से बाहर आम्सटर्डम में थे। लेकिन उन्हें संतोष इस बात है कि पिछले करीब छह दशक का उनका संघर्ष रंग लाया। जो भारत सरकार कभी कहा करती थी कि नगा संघर्ष को कुचलने के लिए सेना को महज कुछ दिन लगेंगे, वह अब मानने लगी है कि नगा समस्या का सैनिक समाधान नहीं हो सकता।
मुइवा की वृहत्तर नगालैंड की अवधारणा माओत्से तुंग की विचारधारा पर आधारित है। वे वृहत्तर नगालैंड में एक ऐसा समाजवाद चाहते हैं, जिसमें सभी के लिए समान आर्थिक विकास हो। लेकिन राज्य का स्वरूप वे धार्मिक रखना चाहते हैं, जो ईसाई आस्था पर आधारित होगा। वृहत्तर नगालैंड की लड़ाई के लिए ही उन्होंने जनवरी 1980 में इशाक कीसी सू के साथ मिलकर एनएससीएन बनाया था, जब नगा स्वाधीनता की लड़ाई लड़ रहे नगा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) ने 1975 में भारत के साथ ‘शिलांग समझौताज् कर भारतीय संविधान को स्वीकार कर लिया और अपने हथियार छोड़ दिए। मुइवा ने इसे नगा लोगों के साथ धोखा करार दिया। हालांकि मुइवा के एनएससीएन में भी एकजुटता नहीं रह सकी और एसएस खपलांग के नेतृत्व में एक गुट 1988 में इससे अलग हो गया।
थाइलैंड, म्यांमार, चीन से उनके बेहतर संबंध हैं और उनका कहना है कि यह उनकी राजनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मुइवा नगा समस्या के शांतिपूर्ण समाधान की बात करते हैं, लेकिन एनएनसी की तरह हथियार छोड़ना उन्हें मंजूर नहीं है। उनका साफ कहना है कि नगा समस्या के पूर्ण समाधान तक उनके नेतृत्व में एनएससीएन शस्त्र, स्वतंत्रता और अपनी भूमि कभी नहीं छोड़ेगा। मुइवा नगालैंड की चुनी हुई सरकार को कठपुतली सरकार मानते हैं।
उनका मानवाधिकारों में यकीन है, लेकिन नगा व्रिोहियों द्वारा सेना के जवानों की हत्या को वे मानवाधिकारों की परिधि से बाहर मानते हैं। उनका मानना है कि नगालैंड में भारतीय सेना की उपस्थिति अवैध है और वे स्थानीय लोगों के मानवाधिकारों का हनन करते हैं। लेकिन संघर्ष में सेना के जो जवान मारे जा रहे हैं, वे नगा सेना के हाथों जान गंवा रहे हैं। मतलब यह एक सेना की दूसरी सेना से लड़ाई है। किसी के मानवाधिकारों का हनन नहीं।