सोमवार, 12 अप्रैल 2010

लौह बनाम फौलादी



बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में आईपीएस अधिकारी अंजू गुप्ता की गवाही ने आडवाणी सहित कई नेताओं के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है, जो अदालत संदेह का लाभ लेकर लगभग बरी हो चुके थे। गुप्ता इस मामले में सीबीआई की नौवीं गवाह थीं। 23 अप्रैल को फिर उन्हें फिर अदालत में पेश होना है, जब सबकी निगाहें उन पर टिकी होंगी। गुप्ता ने पहले भी बतौर पुलिस अधिकारी कई साहसिक कारनामे किए हैं। उनकी बेहतर सेवा को देखते हुए उन्हें पुलिस मेडल से भी सम्मानित किया गया है। बाबरी ध्वंस पर आडवाणी के आह्लाद को उजागर करने वाली अपनी गवाही अंजू गुप्ता रिजवी ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम और देश के संविधान के नाम पर शपथ लेकर दी थी।



अंजू गुप्ता, एक निर्भीक व साहसिक महिला पुलिस अधिकारी हैं, जिन्हें डर नहीं कि आने वाले दिनों में यदि सत्ता बदली तो उनके लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। आखिर अधिकारियों के स्थानांतरण से लेकर उनकी पदोन्नति तक में राजनीतिज्ञों की भूमिका किसी से छिपी तो नहीं है। यह उनकी निडरता ही है कि छह दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में उन्होंने अदालत के सामने अपनी बेबाक राय रखी। भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी से लेकर पार्टी के अन्य नेताओं और विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल जसे भगवा संगठनों के नेताओं के नाम उन्होंने बेहिचक व बेझिझक लिए।

अदालत में उन्होंने साफ कहा कि आडवाणी या दूसरे नेता जो भी कहते रहें, बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए वे अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। आडवाणी ने विध्वंस से पहले ऐसे भड़काऊ भाषण दिए, जिससे कारसेवक उत्तेजित हुए। साध्वी तंभरा जसी नेताओं ने ‘एक धक्का और दो, मस्जिद तोड़ दोज् जसे नारों से कारसेवकों को भड़काया। इस कड़ी में उन्होंने मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डाल्मिया के नाम भी लिए और कहा कि विध्वंस के बाद इन नेताओं ने गले मिलकर एक-दूसरे को बधाई दी और मिठाइयां बांटी।

गुप्ता इस मामले में अभियोजन पक्ष सीबीआई की एक अहम गवाह हैं। जब बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ, वे फैजाबाद में प्रशिक्षण के अंतर्गत अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात थीं और यह उनकी पहली नियुक्ति थी। उन्हें एक पुलिस अधिकारी के रूप में अपना कार्यभार संभाले कुछ ही महीने हुए थे। इस बीच उन्हें आडवाणी की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सौंपी गई। लेकिन तब शायद आडवाणी या कल्याण सिंह के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने भी नहीं सोचा होगा कि यह महिला पुलिस अधिकारी आने वाले दिनों में उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है।

अंजू गुप्ता ने राय बरेली में सीबीआई की विशेष अदालत में मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी गुलाब सिंह के सामने अपने बयान में यह कहकर तत्कालीन सरकारी मशीनरी और प्रशासनिक तंत्र को भी कठघरे में खड़ा कर दिया कि कारसेवकों को विवादित ढांचा ढहाने से रोकने की बजाय वे उसमें सहयोग दे रहे थे। वे चाहते तो कारसेवकों को ऐसा करने से रोक सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

1990 बैच की 45 वर्षीया यह आईपीएस अधिकारी इन दिनों दिल्ली में रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) में तैनात है। यह कोई पहला अवसर नहीं है जब गुप्ता ने इस तरह का साहसिक स्टैंड लिया हो। अपने अब तक के कार्यकाल में उन्होंने कई ऐसे कारनामे किए, जो पुलिस महकमे के लिए गर्व की बात होगी। प्रतापगढ़ में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने बाहुबली (वर्तमान में विधायक) रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से भी पंगा लिया। बिना किसी अंजाम की परवाह किए उन्होंने अपराध खत्म करने और अपराधियों को सजा दिलाने की पुलिस की जिम्मेदारी का वहां बखूबी निर्वाह किया। वहां रहते हुए उन्होंने राजा भैया के खिलाफ खिलाफ गैंग चार्ट और हिस्ट्री शीट तैयार की।

उन्होंने उत्तर प्रदेश सतर्कता विभाग और राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो में भी काम किया। 2000 से 2005 के दौरान वे एशिया और प्रशांत महासागर के देशों के लिए संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक आयोग की सलाहकार भी रहीं। 2005 में भारत लौटने पर उन्होंने मेरठ के एसएसपी का कार्यभार संभाला और वहां भी आपराधिक मामलों का खुलासा किया। एक साल बाद यानी 2006 में वे एकबार फिर संयुक्त राष्ट्र की नशा व अपराध शाखा में नियुक्त हुईं, जहां उन्होंने मानव तस्करी पर काम किया। उन्होंने देश में मानव तस्करी की जांच में पुलिस की भूमिका पर ‘स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर फॉर पुलिस फॉर इंवेस्टिगेटिंग ह्यूमेन ट्रैफिकिंग इन इंडियाज् शीर्षक से एक किताब भी लिखी। 2007-08 के दौरान उन्होंने मेरठ में प्रांतीय सशस्त्र पुलिस बल में पुलिस महानिरीक्षक के रूप में भी अपनी सेवा दी। 2009 में उन्होंने निदेशक के रूप में कैबिनेट सचिवालय का कार्यभार संभाला। उनके बेहतर करियर रिकॉर्ड को देखते हुए 2007 में उन्हें पुलिस मेडल से भी सम्मानित किया गया।

मूलत: उत्तरांचल के षिकेश की रहने वाली अंजू गुप्ता एक व्यावसायिक घराने से ताल्लुक रखती हैं। उन्होंने पार्टीकल फिजिक्स में एमफिल भी किया है। अक्टूबर, 1992 में उन्होंने पहली बार पुलिस अधिकारी के रूप में फैजाबाद में बतौर एएसपी अपना कार्यभार संभाला। इसके बाद उन्होंने लखनऊ, ललितपुर, उधम सिंह नगर और प्रतापगढ़ में बतौर पुलिस अधीक्षक काम किया। परंपरा से अलग शादी उन्होंने एक मुस्लिम से की। उनके पति शफी एहसान रिजवी भी 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं और इस वक्त गृह मंत्री पी चिदंबरम के विशेष अधिकारी के रूप में तैनात हैं।

सीबीआई की विशेष अदालत में आडवाणी के खिलाफ उनके बयान की सत्यता को भाजपा नेता और समर्थक अब यह कहकर सवालों के घेरे में खड़े कर रहे हैं कि आखिर इस मामले में उन पर यकीन क्यों कर लिया जाए, जबकि उन्होंने एक मुसलमान से शादी की है? कैसे मान लिया जाए कि राम मंदिर और बाबरी मस्जिद को लेकर उनकी निष्ठा में शादी से बदलाव न हुआ हो? लेकिन सीबीआई की विशेष अदालत में इस महिला पुलिस अधिकारी ने अपना बयान देने से पहले ‘मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामज् और देश के संविधान के नाम पर शपथ लेकर अपने विरोधियों को करारा जवाब दिया है। इस मामले में 23 अप्रैल को एक बार फिर सीबीआई की विशेष अदालत में उनकी गवाही होगी, जब बचाव पक्ष के वकील उनसे सवाल-जवाब करेंगे। सबकी उनपर टिकी होंगी।

2 टिप्पणियाँ:

राकेश नाथ ने कहा…

आपकी जानकारी अधूरी है
सुश्री अंजू रिजवी गुप्ता ने पहले दिये बयानों में आडवानी को एकदम पाक साफ बताया था. तब एसा क्या हुआ कि वे अपने पहले दिये बयान से एकदम मुकर गईं? क्या वे पहले झूठ बोली या बाद में झूठ बोलीं? वे झूठीं तो निश्विततया हैं

क्या आपको मालूम है कि सुश्री अंजू रिजवी गुप्ता ने रघुराज प्रताप सिंह उर्फ रज्जू भैया से कब पंगा लिया था? मायावती के कार्यकाल में. सुश्री सुश्री अंजू रिजवी गुप्ता वही करतीं है जो तत्कालीन शासन को भाता है,

अब भी जैसे ही इनकी तैनाती रॉ में हुई और इनके पति की तैनाती चिदम्बरम की सेवा में हुई, ये अपने पुराने बयान से मुकर गईं

ैनकी विश्वसनीयता के ऊपर तो सिर्फ हंसा ही जा सकता है

श्वेता यादव ने कहा…

आपकी असहमति का भी स्वागत है.
आगे भी आपकी टिप्पणी अपेक्षित है.