शशांक मनोहर की खास बात यह है कि वे मितभाषी हैं, पर दो टूक बोलने में नहीं हिचकते। क्रिकेट की दुनिया में उनकी तरक्की का ग्राफ शरद पवार के दबदबे के साथ बढ़ता गया। राजनीतिक मोर्चे पर पवार के सिपहसालार प्रफुल्ल पटेल हैं तो क्रिकेट में शशांक। लेकिन कुछ अदद आरोपों और बीसीसीआई के कुछेक अहम फैसलों के अलावा बोर्ड के मौजूदा अध्यक्ष का अपना कोई व्यक्तित्व उभर कर नहीं आया था। वो तो ललित मोदी का कारनामा जब रंग लाया और आईपीएल के पिटारे से अजीबोगरीब प्रेत निकलने शुरू हुए तो शशांक मनोहर का कद भी बढ़ने लगा। मोदी का जवाब फौरी तौर मनोहर दिख रहे हैं। वे अब मुखर हैं। मोदी को तुर्की-ब-तुर्की जवाब देने में लगे हैं। अंतत: किसका सवाल पिटेगा और किसका जवाब हिट होगा, यह देखना दिलचस्प रहेगा।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष हैं शशांक मनोहर। कम, पर स्पष्ट व असरदार बोलने के लिए जाने जाते हैं। आईपीएल विवाद सामने आया तो बीसीसीआई भी हरकत में आई और इसके अध्यक्ष के स्वर भी मुखर हुए। उन्होंने इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के कमिश्नर ललित मोदी पर ‘गोपनीयताज् के नियम का उल्लंघन करने आरोप लगाया। कहा कि ट्विटर के जरिये शेयरधारकों के नाम सार्वजनिक कर मोदी ने बोर्ड और फ्रेंचाइजी में हुए समझौते का उल्लंघन किया, जिसके कारण बोर्ड कानूनी झमेले में पड़ सकता है।
मोदी और मनोहर दोनों बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष शरद पवार के करीबी हैं, लेकिन आईपीएल विवाद गहराया तो दोनों आमने-सामने आ गए। मनोहर ने मोदी को ‘खेल माफियाज् तक कह दिया। इस बीच चर्चा यह भी आई कि मोदी की जिम्मेदारी मनोहर को सौंपी जा सकती है। वे आईपीएल कमिश्नर का कार्यभार संभाल सकते हैं। लेकिन आईपीएल कमिश्नर के रूप में उनकी पारी बेहद चुनौतीपूर्ण होगी, क्योंकि आईपीएल की विभिन्न टीम के मालिकों की पसंद आज भी मोदी हैं। उन्हें संशय है कि शशांक शायद ही उस जिम्मेदारी को बखूबी निबाह सकें, जिसे पिछले तीन साल से मोदी निबाह रहे हैं। हालांकि फिलहाल मोदी के बाद आईपीएल कमिश्नर के रूप में रवि शास्त्री और राजीव शुक्ला का नाम भी सामने आ रहा है। बहरहाल, इस बारे में अंतिम फैसला सोमवार को आईपीएल की गवर्निग काउंसिल की बैठक में होगा।
शशांक मनोहर पवार की उस टीम का हिस्सा रहे हैं, जिसके माध्यम से उन्होंने बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया को किनारे करने की रणनीति अपनाई, जो 2006 में पवार के बीसीसीआई अध्यक्ष बनने के बाद भी काफी प्रभावी थे। ललित मोदी के बड़बोलेपन से अलग शशांक मनोहर बेहद कम, पर स्पष्ट बोलने के लिए जाने जाते हैं। 2008 में पवार के बाद बीसीसीआई के अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद उन्होंने खिलाड़ियों से लेकर चयन समिति तक के मामले में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए। वर्ष 2007 में जब भारतीय क्रिकेट टीम वर्ल्ड कप हार गई तो उन्होंने खिलाड़ियों को प्रदर्शन के आधार पर मेहनताना देने का सुझाव दिया। उनका यह सुझाव सुर्खियों में रहा। चयन समिति के संदर्भ में भी उन्होंने कहा था कि इसमें केवल उन्हीं खिलाड़ियों को शामिल किया जाए, जिन्होंने नियुक्ति से 10 साल पहले अपना आखिरी अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला हो। वे इस बात में यकीन करते हैं कि भारत में क्रिकेट को बेचने के लिए किसी विशेष बाजार की जरूरत नहीं है, बल्कि यह खुद-ब-खुद अपना बाजार तैयार कर लेता है। मनोहर का चुनाव भी बेहद दिलचस्प रहा। सितंबर 2007 में जब उनका चुनाव हुआ तो सामने प्रतिद्वंद्वी के रूप में कोई नहीं था। सेंट्रल जोन से वे एक मात्र उम्मीदवार थे।
मनोहर मूलत: महाराष्ट्र के नागपुर से संबंध रखते हैं। उन्नतीस सितंबर, 1957 को वहीं वीआर मनोहर के घर उनका जन्म हुआ। पिता पेशे से वकील थे। शरद पवार से उनके परिवार का शुरू से ही काफी करीबी रिश्ता रहा है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में पवार के कार्यकाल के दौरान शशांक मनोहर के पिता वीआर मनोहर राज्य के महाधिवक्ता थे। पिता के पदचिह्नें पर चलते हुए शशांक ने भी कानून की पढ़ाई की और बतौर अधिवक्ता प्रैक्टिस भी शुरू की, लेकिन अंतत: वे क्रिकेट प्रशासक के रूप में उभरे। 1996 में वे विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बने और इसके बाद लगातार उनका कॅरियर इस दिशा में आगे बढ़ता रहा। 2006 में जब शरद पवार बीसीसीआई के अध्यक्ष बने तो शशांक मनोहर उसके उपाध्यक्ष चुने गए। शशांक बीसीसीआई के उन पांच उपाध्यक्षों में से हैं, जिन्होंने पवार के बीसीसीआई अध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान काम किया। और फिर, 2008 में पवार के बाद वे बीसीसीआई अध्यक्ष बने।
लेकिन बीसीसीआई के अध्यक्ष जसा हाई-प्रोफाइल रुतबा होने के बावजूद वे सादगी पसंद हैं। वे आज भी मोबाइल फोन लेकर नहीं चलते। 2007 से पहले उनके पास पासपोर्ट भी नहीं था। उनका पहला विदेशी दौरा 2008 में हुआ, जब वे आईसीसी की बैठक में भाग लेने दुबई गए थे। उन्हें करीब से जानने वालों का कहना है कि वे आसानी से किसी पर भरोसा कर लेते हैं। लेकिन जब उन्हें धोखा मिलता है, तो सामने वाले के लिए फिर वे बेहद कड़ा रुख अपनाते हैं। क्रिकेट प्रशासक के रूप में अपने विवेक को तरजीह देते हैं, तो निजी जीवन में भी इससे अलग फैसला नहीं लेते।
इन सबसे अलग शशांक मनोहर से जुड़े विवादों की भी कमी नहीं है। आरोप है कि उनके परिवार का दाऊद गैंग से करीबी रिश्ता है और कई मौकों पर उनके परिवार के सदस्यों ने दाऊद गैंग का बचाव किया। इसी तरह, 26 नवंबर, 1995 को विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन के मैदान पर भारत और न्यूजीलैंड के बीच खेले जा रहे एक दिवसीय मैच के दौरान वहां की एक दीवार गिर गई थी, जिसमें 13 लोग मारे गए थे, जबकि 70 से अधिक घायल हो गए थे। क्रिकेट के इतिहास में मैदान पर हुई इतनी बड़ी त्रासदी के लिए भी शशांक मनोहर और उनके पिता को जिम्मेदार ठहराया जाता है, यह कहकर कि उन्होंने दीवार के निर्माण का ठेका अपने किसी करीबी रिश्तेदार को दिलवाया था। आरोपों के मुताबिक यह कहना भी गलत है कि शशांक मनोहर बीसीसीआई से एक भी पैसा नहीं लेते, बल्कि अपनी यात्राओं का खर्च भी वे स्वयं उठाते हैं। तथ्य इससे उलट है। उन्होंने विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन के खजाने से पैसे लेकर स्कूली बच्चों की एक टीम को आर्थिक मदद दी और उसे तीन माह के लिए इंगलैंड भेजा, क्योंकि इसमें उनका बेटा भी था। बहरहाल, ये सभी आरोप हैं। इनमें सच्चाई कितनी है, कहना फिलहाल मुश्किल है। पर इतना स्पष्ट है कि शशांक मनोहर आज की तारीख में बीसीसीआई के प्रभावी व्यक्तियों में से एक हैं।
मंगलवार, 27 अप्रैल 2010
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