यूपीए सरकार के एक प्रमुख सहयोगी डीएमके के सांसद ए राजा की वजह से यूपीए सरकार को हाल के दिनों में काफी फजीहत ङोलनी पड़ी। वह सरकार में संचार मंत्री थे। 2जी स्पेक्ट्रम मामले में हंगामा इस कदर बरपा कि उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन इस्तीफे के बाद भी शोर थमने का नाम नहीं ले रहा। पेश है एक रिपोर्ट।
इन दिनों यूपीए सरकार अपने ही नुमाइंदों के भ्रष्ट कारनामों से घिरी है। कें्र की मनमोहन सिंह सरकार को गठबंधन के एक महत्वपूर्ण सहयोगी ्रमुक के नेता ए राजा ने पसोपेश में डाल रखा है। प्रधानमंत्री को न तो विपक्ष के सवालों का जवाब मिल रहा है और न ही सुप्रीम कोर्ट के सवाल का जवाब। राजा पर संचार मंत्री रहते हुए 2जी स्पेक्ट्रम का लाइसेंस निजी मोबाइल कंपनियों को औने-पौने दाम में देने का आरोप है, जिससे सरकार को करोड़ों का चूना लगा। इस पर हंगामा हुआ तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा भी देना पड़ा, लेकिन वे बार-बार यही दोहरा रहे हैं कि उन्होंने कुछ भी कानून से परे हटकर नहीं किया। वे अब भी खुद को इस मामले में निर्दोष बता रहे हैं और सभी आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं।
अंदिमुथु राजा, जो ए राजा के नाम से जाने जाते हैं, के खिलाफ 2जी स्पेक्ट्रम मामले में हंगामा पहली बार नहीं हुआ है। यूपीए सरकार के एक साल पूरे होने पर भी विपक्ष ने इसे लेकर हंगामा किया था। तब भी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने इसमें राजा की भूमिका पर सवाल उठाए थे। विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाकर संसद नहीं चलने दी थी। पर तब उनकी कुर्सी नहीं गई। तब उनमें जबरदस्त आत्मविश्वास भी देखने को मिलता था। शायद इसलिए कि वे यूपीए के एक अहम सहयोगी ्रमुक के सदस्य ही नहीं, बल्कि पार्टी सुप्रीमो करुणानिधि के करीबी भी हैं। राजा के बचाव में करुणानिधि ने यहां तक कह दिया था कि वे दलित हैं, इसलिए उनका विरोध हो रहा है। लेकिन अब जब कें्र के दबाव में करुणानिधि ने भी राजा के सिर से हाथ हटा लिया तो उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी। यह अलग बात है कि करुणानिधि ने यह फैसला कें्र के दबाव में लिया, जिस पर कई बार अपने पक्ष में फैसलों के लिए उनकी पार्टी दबाव बना चुकी है।
संसद के शीतकालीन सत्र में पेश अपनी रिपोर्ट में कैग ने साफ कहा है कि राजा के फैसलों से सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ। 2जी स्पेक्ट्रम नीति मामले में राजा के फैसले से यूनिटेक, डाटाकॉम (अब वीडियोकॉन), एस-टेल, स्वान और लूप टेलिकॉम को अनुचित फायदा हुआ। इन्हें जनवरी, 2008 में लाइसेंस दिए गए थे। कैग ने यह भी कहा है कि यूनिफाइड एक्सेस सर्विस लाइसेंस (यूएएसएल) के आवंटन में पारदर्शिता नहीं बरती गई। पूरी प्रक्रिया मनमाने, अनुचित और सभी को समान अवसर मुहैया कराए बगैर पूरी की गई। इसमें वित्तीय पात्रता, नियमों और प्रक्रियाओं को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया। 77 पेज की अपनी रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि कंपनियों की सही हैसियत का आकलन भी नहीं किया गया। दूरसंचार विभाग ने 2008 में 2जी स्पेक्ट्रम के लिए जो 122 नए लाइसेंस जारी किए थे, उनमें से 85 आवेदक इसके पात्र नहीं थे। लाइसेंस 2001 के मूल्य पर ही जारी किए गए, जिससे सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ। इस बारे में दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की सिफारिशों की भी अनदेखी की गई। विभाग ने अपने ही तय मानदंड ‘पहले आओ, पहले पाओज् का भी अनुसरण नहीं किया।
संसंद के शीतकालीन सत्र में पेश कैग की इस रिपोर्ट पर एक बार फिर खूब हंगामा हुआ। कामकाज ठप रहा। विपक्ष मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग पर अड़ा है तो सरकार सीबीआई द्वारा जांच किए जाने की बात कहती है। अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रधानमंत्री कार्यालय से सवाल किया है, जिसका जवाब उसे ढूंढ़े नहीं मिल रहा। जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार से पूछा है कि आखिर उनकी शिकायत पर कार्रवाई होने में देरी क्यों हुई? स्वामी ने राजा के खिलाफ 2जी स्पेक्ट्रम मामले में धांधली की शिकायत नंवबर, 2008 में ही सीबीआई से की थी, जिस पर जांच एजेंसी ने ग्यारह माह बाद अक्टूबर, 2009 में मामला दर्ज किया, वह भी अज्ञात लोगों के खिलाफ। आरोप है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस मामले पर 16 माह तक चुप्पी साधे रखी। पीएमओ ने न तो ना कहा और न ही हां, जबकि कोर्ट ने इजाजत संबंधी फैसले पर अधिकतम तीन माह की समय सीमा निर्धारित कर रखी है। जब इस बारे में स्वामी ने पीएमओ से जानना चाहा तो उन्हें मार्च, 2010 में जवाब मिला कि मामले की जांच अभी सीबीआई कर रही है। फिर राजा के खिलाफ मामला दर्ज करने को लेकर यह उतावलापन क्यों? अदालत को पीएमओ की इस भाषा पर भी आपत्ति है।
जाहिर तौर पर पिछले दो साल से सरकार राजा के खिलाफ कार्रवाई को लेकर बचती रही। शायद गठबंधन धर्म की मजबूरी के कारण, क्योंकि डीएमके यूपीए का एक अहम घटक है। सरकार राजा के खिलाफ कार्रवाई कर पार्टी सुप्रीमो करुणानिधि को नाराज कर अपनी स्थिरता को प्रभावित नहीं करना चाहती थी। राजा के बचाव में करुणानिधि ने यहां तक कह दिया था कि चूंकि वे दलित हैं, इसलिए उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी लेखा परीक्षा करने वाली लोकतंत्र की इस महत्वपूर्ण निगरानी संस्था को नसीहत दे डाली कि वह जानबूझकर और भूलवश हुई गलती के बीच फर्क करे। दोनों गलतियों को एक ही पैमाने से नहीं मापा जाना चाहिए। 2जी स्पेक्ट्रम मामले के ठीक बाद कैग को दी गई प्रधानमंत्री की यह नसीहत कई मायने में महत्वपूर्ण है। यह पूरे प्रकरण में उनकी नाराजगी को भी दर्शाता है।
बहरहाल, अब भूतपूर्व संचार मंत्री हो चुके राजा की बात की जाए तो वे दक्षिण के राज्यों में उसी दलित राजनीति का हिस्सा हैं, जिसका उदय पेरियार के नेतृत्व में हुआ और जिसके बाद ऊंची जातियों की राजनीति वहां हाशिये पर चली गई। लेकिन घोटाले के आरोप से घिरा यह मंत्री दलितों के कम ‘दलित राजनीतिज् के अधिक करीब लगता है। राजा तमिलनाडु में नीलगिरि संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे तीसरी बार सांसद निर्वाचित हुए हैं। यूपीए के पहले कार्यकाल में भी वे संचार मंत्री थे। हालांकि यह बात राजा के पक्ष में जाती है कि संचार मंत्री रहते हुए उन्होंने जनता को सस्ती दरों पर टेलीफोन सुविधा मुहैया कराने का जो वादा किया था, उसे काफी हद तक पूरा किया। लेकिन स्पेक्ट्रम घोटाले ने उनकी तमाम उपलब्धियों पर ग्रहण लगा दिया।
वैसे यह पहला मौका नहीं है, जब राजा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा। इससे पहले उन पर म्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को प्रभावित करने का आरोप भी लग चुका है। कहा गया कि उन्होंने एक डॉक्टर की अग्रिम जमानत को लेकर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को प्रभावित करने का प्रयास किया, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे। तब भी राजा ने अपने स्वाभानुसार बार-बार पूछे जाने पर भी केवल इतना कहा, ‘मैं सभी आरोपों से इनकार करता हूं। इस बारे में मैं कुछ नहीं जानता।ज्
राजा तब भी सुर्खियों में आए थे, जब वर्ष 2008 में श्रीलंका ने तमिल व्रिोहियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू की थी। कार्रवाई में तमिल नागरिकों के प्रभावित होने की बात कह ्रमुक के नेताओं ने कें्र पर इस बात के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह श्रीलंका सरकार से तमिल नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कहे। दबाव की इस रणनीति के तहत पार्टी के 14 सांसदों ने इस्तीफा दे दिया, जिसमें राजा भी शामिल थे। लेकिन यह इस्तीफा राजनीतिक खेल का एक हिस्सा था। सांसदों ने इस्तीफा अपने पार्टी सुप्रीमो को सौंपा था और इसमें तिथि भी बाद की लिखी थी।
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