शनिवार, 17 अप्रैल 2010

किया-धरा ललित

आईपीएल हिट हुआ तो बदौलत ललित मोदी के और उन्हीं के कारण इस समय पिट रहा है आईपीएल। मोदी वाकई ललित हैं। उन्हीं की रंगीनियत बीसीसीआई के इस महाआयोजन की हर चीज पर नुमायां है। मुनाफ उनका गोया नशा है। क्रिकेट कमाऊ तो थी ही, मोदी ने उसे कामधेनु बना दिया। वे आईपीएल के सर्वेसर्वा हैं। नियम-कानून सब उनके। यही कारण है कि इसे सफल बनाने पर उनकी वाहवाही हुई तो सारे विवादों का ठीकरा भी उनके ही सिर है। इसमें सारा लेना-देना उन्हीं का है। ललित मोदी का लड़ाकू तेवर, बड़बोलापन, अहमन्यता और सब कुछ से बेपरवाही का अंदाज बड़े-बड़ों को हैरत में डाले हुए है।



एक तेज-तर्रार व मंङो हुए व्यवसायी का नाम है ललित मोदी, जिन्होंने क्रिकेट को एक नई शक्ल ही नहीं दी, बल्कि उसकी काया ही बदल दी। उन्होंने उसे शुद्ध व्यावसायिक शक्ल दे दी। अपनी व्यावसायिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए इस शख्स ने क्रिकेट में हाथ आजमाया और कामयाबी के झंडे गाड़े। आईपीएल के कमिश्नर के रूप में उन्होंने तीन घंटे का बीसमबीस क्रिकेट शुरू किया, जो टेलीविजन के दर्शकों को खूब भाया। 20 ओवरों का सीमित मैच मानो उनके लिए क्रिकेट मैच न होकर कोई सिनेमा थी। खिलाड़ियों की भी बल्ले-बल्ले रही। उन पर तो उन्होंने धन की वर्षा ही करा दी। आईपीएल मैच में चीयर लीडर्स भी मोदी की परिकल्पना ही थी, दर्शकों के साथ-साथ खिलाड़ियों के भी मनोरंजन के लिए।

मोदी की इस परिकल्पना ने निश्चय ही क्रिकेट को व्यावसायिक मुनाफा दिया, जिससे आईपीएल को एक दिन में करीब छह करोड़ रुपए की आय होती है। लेकिन इसमें टेस्ट क्रिकेट या कहें परंपरागत शालीन क्रिकेट जसी चीज काफी पीछे छूट गई, जिसके चाहने वाले आज भी उसकी कसमें खाते हैं। यही वजह है कि क्रिकेट को मुनाफा देने के लिए व्यावसायिक स्तर पर उनकी तरीफ होती है तो क्रिकेट की शक्ल बिगाड़ने के लिए उन्हें आड़े हाथों भी लिया जाता है। लेकिन इन सबसे से परे मोदी जुटे हैं क्रिकेट के इस व्यवसाय को निरंतर आगे बढ़ाने में। उनकी मुनाफाखोर महत्वाकांक्षा इस कदर तुंद है कि अगर सरकार ने पिछले साल लोकसभा चुनाव के कारण सुरक्षा मुहैया कराने में असमर्थता जाहिर की तो पूरे खेल को लेकर वे दक्षिण अफ्रीका चले गए। उनका दावा है कि अगले चार साल में आईपीएल का आकार मौजूदा आकार से चार से छह गुना अधिक होगा। अगले साल से ही टीमें आठ से दस और मैचों की संख्या 60 से बढ़कर 90 हो जाएगी।

ऐसा नहीं है कि क्रिकेट को यह व्यावसायिक शक्ल देने में मोदी को यकायक कामयाबी मिल गई। काफी कोशिशों के बाद उन्होंने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को इसके लिए तैयार किया। 1990 के शुरुआती दशक में ही उन्होंने बीसीसीआई के सामने इसका प्रस्ताव रखा था, जिसे तब बीसीसीआई ने नकार दिया था। इसके बाद मोदी किसी भी तरह बीसीसीआई से जुड़ने की कवायद में जुट गए, क्योंकि उन्हें यकीन हो चला था कि यदि व्यवस्था बदलनी है तो उसका हिस्सा बनना पड़ेगा। सबसे पहले उन्होंने राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन की सदस्यता ली। बाद में वे इसके अध्यक्ष भी बने, जिससे उन्हें बीसीसीआई में एक सीट मिल गई।

इस बीच 2005 में बीसीसीआई के अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में शरद पवार की जीत हुई, जिसमें मोदी की भूमिका को काफी महत्वपूर्ण माना गया। उसी साल मोदी बीसीसीआई के उपाध्यक्ष बन गए। वे बीसीसीआई के अब तक के सबसे युवा उपाध्यक्ष थे। बीसीसीआई में रहते हुए उन्होंने इसके व्यावसायिक स्तर पर काम करना शुरू कर दिया। मोदी की कोशिशों का ही नतीजा रहा कि 2005 से 2008 के बीच बोर्ड के राजस्व में करीब सात गुनी वृद्धि हुई। अंतत: 2008 में उन्हें सीमित ओवर के फटाफट क्रिकेट को साकार रूप में देने में कामयाबी मिली, जब उन्होंने ट्वेंटी-ट्वेंटी के इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की शुरुआत की।

इस बीच उन पर कई आरोप भी लगे। मामले अदालतों में घसीटे गए। उन पर स्वयं को राजस्थान का निवासी बताने के लिए गलत दस्तावेजों के आधार पर राजस्थान में जमीन खरीदने का आरोप है, क्योंकि नियमों के मुताबिक राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष पद का चुनाव वहां का स्थाई निवासी ही लड़ सकता है। जयपुर पुलिस इसकी जांच कर रही है। वहीं सुप्रीम कोर्ट में उनके राजस्थान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष बनने को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि वे अमेरिका में पढ़ाई के दौरान एक आपराधिक मामले में दोषी करार दिए जा चुके हैं और एसोसिएशन के नियमों के अनुसार आपराधिक मामले में दोषी करार दिए गए किसी व्यक्ति को इसका पदाधिकारी नहीं बनाया जा सकता। इसी आधार पर मुंबई हाईकोर्ट में भी एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें उनके बीसीसीआई के उपाध्यक्ष पद पर चुनाव को चुनौती दी गई है। 2009 में उन्हें एक और झटका मिला, जब वे राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष पद का चुनाव कें्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सीपी जोशी के हाथों हार गए।

संपन्न व्यावसायिक घराने से ताल्लुक रखने वाले मोदी राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के करीबी माने जाते हैं। मोदी पर 2008 के जयपुर धमाके के पीड़ितों के लिए मुख्यमंत्री सहायता कोष में छह करोड़ रुपए जमा कराने का आश्वासन देने के बावजूद ये रुपए जमा नहीं कराने काआरोप है। यह मामला भी फिलहाल अदालत में है। मोदी हाल में आईपीएल की नई टीम कोच्चि के शेयर धारकों का नाम जाहिर करने से चर्चा में आए हैं। उन्होंने विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर का नाम भी लिया और कहा कि उन्होंने टीम की एक प्रमुख शेयर धारक सुनंदा पुष्कर का नाम नहीं बताने के लिए उन पर दबाव बनाया। लेकिन जब बात निकली तो फिर दूर तक गई। आईपीएल के पूरे व्यवसाय में उनके तीन करीबी रिश्तेदारों की हिस्सेदारी सामने आई, जिनमें से एक उनके दामाद गौरव बर्मन भी हैं। इस समय सारा देश कोच्चि विवाद में नए-नए खुलते रहस्यों का पर्दाफाश हैरत से देख रहा है। उनके आलोचक उनके पर काटने का दबाव बना रहे हैं। आईपीएल नखशिख विवाद में है। अपसंस्कृति से लेकर आर्थिक गड़बड़ियों के आरोप हैं। आयकर विभाग उसके मुख्यालय में छापा मार रहा है।

उन्नतीस नवंबर, 1963 को दिल्ली में एक संपन्न व्यावसायिक घराने में पैदा हुए मोदी को स्कूली शिक्षा कभी रास नहीं आई। उनके पिता कृष्ण कुमार मोदी ‘मोदी एंटरप्राइजेजज् के चेयरमैन हैं, जिसका कारोबार करीब 40 मिलियन का बताया जा रहा है। घरवालों ने स्कूली शिक्षा पूरी करने के लिए उन्हें शिमला और नैनीताल भेजा, लेकिन वे अक्सर वहां से भाग निकलते थे। उनकी इच्छा अमेरिका में पढ़ने की थी। इसलिए उन्होंने एसएटी क्वालीफाई किया, जो स्कूली शिक्षा पूरी किए बगैर ही अमेरिकी कॉलेज/विश्वविद्यालय में नामांकन की अर्हता तय करता है। वहां उन्हें नॉर्थ कैरोलिना में डरहाम के ड्यूक विश्वविद्यालय में दाखिला भी मिल गया। इसी दौरान 1985 में डरहाम काउंटी कोर्ट ने उन्हें चार सौ ग्राम कोकीन रखने और अपहरण के मामले में दोषी करार दिया।

1986 में ड्यूक विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद वे भारत लौट आए। इस बीच 1987-1991 तक वे अंतर्राष्ट्रीय तंबाकू कंपनी के अध्यक्ष भी रहे। 1992 में वे गोडफ्रे फिलिप्स इंडिया के एग्जक्यूटिव डायरेक्टर भी बने। इसी दौरान उन्होंने टेलीविजन चैनलों से क्रिकेट मैच के प्रसारण पर बातचीत शुरू की और बीसीआई के समक्ष फुटबॉल लीग की तर्ज पर सीमित ओवर के मैच का प्रस्ताव रखा, जिसे तब बीसीसीआई ने नकार दिया था।

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