सोमवार, 12 सितंबर 2011

महिला कुपोषण : एक अहम चुनौती


महिला सशक्तीकरण के दावों के बाद भी देश की आधी आबादी सामाजिक-आर्थिक स्तर पर उपेक्षा का दंश झेलने के लिए मजबूर है. उनका खराब स्वास्थ्य इसी का नतीजा है. उचित खानपान नहीं मिलने के कारण देश में करीब 33 प्रतिशत महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं.

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और इससे सम्बद्ध खाद्य एवं पोषण बोर्ड के तत्वावधान में देशभर में एक से सात सितम्बर तक 'राष्ट्रीय पोषण सप्ताह' मनाया जाता है. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में महिलाओं की संख्या 58,64,69,174 है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े इनमें से करीब 33 प्रतिशत महिलाओं को कुपोषण का शिकार बताते हैं.

देश में मातृत्व मृत्यु दर का एक बड़ा कारण भी कुपोषण है. हाल ही में जारी यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2008 में प्रति 1,00,000 बच्चों के जन्म पर मातृत्व मृत्यु दर 230 थी और इसका एक बड़ा कारण महिलाओं में कुपोषण है. सरकार ने 2015 तक मातृत्व मृत्यु दर प्रति 1,00,000 बच्चों पर घटाकर कम से कम 108 करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद 2001 से अब तक मातृत्व मृत्यु दर में आई कमी के आंकड़ों को देखते हुए यह बेहद चुनौतीपूर्ण जान पड़ता है. 2001-03 में यह दर 301 और 2004-06 में 254 थी.

उचित खानपान के अभाव में महिलाओं में एनीमिया की समस्या आम है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, महिलाओं में एनीमिया की समस्या 1998-99 से बढ़ी है. 2005-06 के आंकड़ों के मुताबिक, करीब 55 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं. एनीमिया के कारण न केवल महिलाओं को गर्भधारण में समस्या आती है, बल्कि कई बार यह गर्भपात और बच्चे तथा मां की मृत्यु का कारण भी बनता है. एनीमिया की शिकार महिलाएं अक्सर सामान्य से कम वजन के बच्चे को जन्म देती हैं, जिससे बच्चा भी कुपोषित होता है. महिलाओं में आयोडीन की कमी की समस्या भी आम है.

देश के शहरी समाज में मोटापा की समस्या भी तेजी से बढ़ रही है, जो कुपोषण का ही एक प्रकार है. करीब 13 प्रतिशत महिलाएं मोटापा या सामान्य से अधिक वजन की शिकार हैं.

आधी आबादी में कुपोषण की यह स्थिति निश्चित रूप से चिंताजनक है और इसे दूर करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है, क्योंकि किसी भी समाज के विकास में उसकी स्वस्थ जनसंख्या बहुत मायने रखती है और इसमें आधी आबादी के स्वास्थ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. सरकार ने हालांकि लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाने के लिए सरकार ने कई कार्यक्रम और योजनाएं बनाई हैं. लेकिन महिलाओं में कुपोषण के आंकड़े बताते हैं कि इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.

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