मंगलवार, 4 मई 2010

कलंकित माधुरी!

माधुरी गुप्ता के कारनामे से देश सकते में है। पाक के लिए जासूसी कर रही यह महिला कहने को वहां उच्चायोग में भारतीय राजनयिक थी। गनीमत यह है कि अतिगोपनीय सूचनाएं इस बी ग्रेड अधिकारी की पहुंच से दूर थीं। फिर उसका कारनामा उसके पेशे पर दाग लगा गया। उसके जासूसी में पड़ने के जो भी कारण रहे हों, यह साफ है कि उसने संगीन अपराध किया। हर कारण इस अपराध से बहुत छोटा है।



माधुरी गुप्ता जासूस! या भारतीय विदेश सेवा की अधिकारी! किस रूप में उन्हें पहचाना जाए, कहना मुश्किल। आरोप है कि उसने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को संवेदनशील जानकारियां दी और ऐसा करके उसने देश से गद्दारी की। हाल में दिल्ली पुलिस ने उन्हें ऐसे वक्त गिरफ्तार किया, जब वह भारत आई। या यूं कहें कि उन्हें भारत बुलाया गया, गिरफ्तारी के लिए, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) की तैयारियों के सिलसिले में बातचीत के बहाने। वह आई और गिरफ्तार हो गई। अब जारी है पुलिस की उससे पूछताछ।

माधुरी ने आईएसआई को भारत से संबंधित संवेदनशील जानकारियां किस तरह मुहैया करवाई, यह भी खासा दिलचस्प है। भारतीय विदेश सेवा के समूह-बी की यह अधिकारी एक पाकिस्तानी के प्रेमजाल में इस कदर उलझीं कि फिर देश सेवा कहीं बहुत पीछे रह गई। फिलहाल यह साफ नहीं हो पाया है कि ‘राणाज् नाम का वह व्यक्ति आईएसआई से संबद्ध है या वहां की सेना से। समझा जा रहा है कि माधुरी ने धर्म परिवर्तन भी कर लिया और अब वह एक शिया मुस्लिम महिला है। इस्लाम में उसकी गहरी आस्था बताई जा रही है, जिसमें धर्म परिवर्तन उसने छह साल पहले ही कर लिया था। लेकिन आलोचनाओं और अतिवादियों के डर से उसने इसे छिपाए रखा।

उसके द्वारा पाकिस्तान तक खुफिया जानकारी पहुंचाने का एक अन्य कारण काम की बेहतर परिस्थितियां न होना भी बताया जा रहा है। शुरुआती पूछताछ में उसने बताया भी है कि उसके काम करने की परिस्थितियां बेहद निराशाजनक थीं और एक लंबे अरसे से उसकी तरक्की नहीं हुई थी। इसलिए भारतीय अधिकारियों के प्रति उसमें गुस्सा था। ऐसे में उसने भारत के खिलाफ पाकिस्तान के लिए काम करने का मन बनाया। ऐसा करके वह भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों को सबक सिखाना चाहती थी, जो माधुरी के ही अनुसार लोगों से अच्छा व्यहार नहीं करते। उसे इस बात का भी दु:ख था कि भले ही वह कितनी भी प्रतिभावान हो, लेकिन विदेश सेवा में उसे दोयम दज्रे के अधिकारी का स्थान ही मिला।

पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग में द्वितीय सचिव के पद पर तैनात 53 वर्षीया माधुरी को यह दर्जा कई साल बाद मिला, जबकि मुख्य आईएफएस के अधिकारियों को आम तौर पर तीन साल के बाद ही यह दर्जा मिल जाता है। 2007 में उसकी नियुक्ति पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग में हुई थी। पाकिस्तान में नियुक्ति से पहले वह नई दिल्ली के सप्रू हाऊस में भारतीय विदेश नीति के थिंक टैंक इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर (आईसीडब्ल्यूए) में कार्यरत थी। 2006-07 के दौरान उसने आईसीडब्ल्यू में सहायक निदेशक के रूप में कार्य किया। पाकिस्तान के लिए जासूसी करने की उसकी गतिविधियां तब संदेह के घेरे में आई, जब वह अपने कार्यक्षेत्र से बाहर जाकर वहां दूसरे काम भी करने लगीं। वह वहां उच्चायोग के प्रेस व सूचना विभाग में कार्यरत थी। उर्दू भाषा पर उसकी बेहतरीन पकड़ है। उसे पाकिस्तान भेजने का एक बड़ा कारण यह भी है। उर्दू के अखबारों में वह खास तौर पर दिलचस्पी लेती थी। कभी उसने उर्दू अखबारों के बारे में कहा भी था कि ‘वास्तविक खबरज् इनमें ही होती है, अंग्रेजी के अखबार नीरस होते हैं और प्राय: एक दिन बाद की खबरें छापते हैं। पिछले करीब एक साल से उसकी गतिविधियां संदेह के घेरे में थीं। उस पर तभी से नजर रखी जा रही थी। बताया जाता है कि ‘राणाज् नाम के व्यक्ति को वह इमेल के जरिये गोपनीय जानकारी मुहैया कराती थी और इसके लिए कार्यालय के कंप्यूटर का नहीं, बल्कि घर के कंप्यूटर का इस्तेमाल करती थी।

माधुरी का यह कदम पूरे देश और खास तौर पर भारतीय विदेश सेवा के लिए किसी झटके से कम नहीं है। भारतीय विदेश सेवा के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब कोई अधिकारी दुश्मन देश के लिए जासूसी करते पकड़ा गया हो। इससे पहले वह बगदाद और कुआलालंपुर में भी भारतीय मिशन में काम कर चुकी है। कुआलालंपुर में उसने भारतीय विदेश मंत्रालय के विदेशी प्रकाशन विभाग की पत्रिका ‘इंडिया पर्सपेक्टिवज् में काम किया। वह मुख्य भारतीय विदेश सेवा की सदस्य नहीं है, बल्कि भारतीय विदेश सेवा के निचले कैडर आईएफएस-बी से संबद्ध थी। अब उसे लंदन या वाशिंगटन जसे किसी देश में पोस्टिंग की उम्मीद थी। कुछ महीने पहले अपने काम को बेहतर बताते हुए उसने बड़े विश्वास से वहां पोस्टिंग की बात कही थी।

जासूसी प्रकरण ने निश्चय ही भारतीय जनमानस और सरकारी प्रतिष्ठानों में उसकी छवि धूमिल कर दी है, लेकिन उसके पुराने परिचितों के लिए इन बातों पर यकीन करना किसी सपने पर यकीन करने जसा ही है। मित्र उसे आज भी सरल व ईमानदार अधिकारी के रूप में याद करते हैं। उनके अनुसार यह उसकी खासियत है कि वह बड़ी आसानी से लोगों से घुलमिल जाती है और नई चीजों को तेजी से अपनाती है। चाहे कपड़ों की बात हो या नए हेयर स्टाइल की, वह हर चीज पर बड़ी बेबाकी से बात करती है। 2007 में पाकिस्तान में नियुक्ति से पहले उसने एक मुस्लिम महिला से उर्दू सीखी। इसके अलावा दिल्ली के जवाहर लाल विश्वविद्यालय से वह पहले ही एक अन्य विदेशी भाषा में सीख चुकी थी। उर्दू पर उसकी पकड़ इतनी अच्छी है कि एक बार के लिए यह यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि यह उसकी दूसरी भाषा है।

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