सोमवार, 10 मई 2010

तूलानी नहीं तहलियानी

न्यायाधीश मदन लक्ष्मणदास तहलियानी को पूरा देश जानता है। सभी तारीफ कर रहे हैं कि कस्साब मामले की सुनवाई रिकॉर्ड समय में हुई। लेकिन यह उनकी मेहनत और अपने कार्य के प्रति एकाग्र निष्ठा के कारण संभव हुआ। तहलियानी का यह विशेष गुण है और इसे वे पहले भी कई बार प्रदर्शित कर चुके हैं।

मुंबई हमलावारों में से पकड़े गए एक मात्र जिंदा आतंकवादी अजमल आमिर कस्साब को मौत की सजा सुनाई गई। उसे सजा सुनाने वाले न्यायाधीश हैं एम एल तहलियानी, यानी मदन लक्ष्मणदास तहलियानी। अपने करीब 23 साल के न्यायिक कॅरियर में पहली बार मौत की सजा सुनाने वाले न्यायमूर्ति तहलियानी ने दो टूक कहा कि कस्साब को जीने का कोई अधिकार नहीं है। उसने जो जुर्म किया, उसके लिए मौत की सजा से कम कुछ नहीं दिया जा सकता। उन्होंने बचाव पक्ष की यह दलील भी पूरी तरह खारिज कर दी कि कस्साब कच्ची उम्र का है और वह पाकिस्तान में बैठे लश्कर के आकाओं के हाथों बस मोहरा बन गया। उसे सुधरने का एक मौका दिया जाए। न्यायाधीश ने साफ कहा कि उसके सुधरने की कोई संभावना नहीं है। वह अपनी मर्जी से आतंकवादी बना और भारत पर हमला किया। उसे मौत से कम कोई भी सजा देने का अर्थ होगा लोगों का न्यायपालिका पर से भरोसा उठ जाना। न्यायपालिका पर लोगों का भरोसा बनाए रखने के लिए भी जरूरी है कि उसे मौत की सजा दी जाए।

आपराधिक व दीवानी, दोनों कानूनों में पारंगत तहलियानी कठोर, पर निष्पक्ष न्याय के लिए जाने जाते हैं। इस मामले में एक बार फिर उनकी निष्पक्षता साफ हुई। एक ओर उन्होंने कस्साब को पांच मामलों में मौत और इतने ही मामलों में उम्रकैद की सजा सुनाई तो हमलावरों को मदद मुहैया कराने के आरोप में गिरफ्तार फहीम अंसारी और सबाउद्दीन को उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं होने की बात कह बरी भी कर दिया। निश्चय ही न्यायाधीश तहलियानी का फैसला ऐतिहासिक है। इतना ही नहीं, जब कोई भी वकील कस्साब की पैरवी के लिए तैयार नहीं था, तो उन्होंने इस मामले में सख्ती अपनाते हुए वकीलों को कस्साब की पैरवी के लिए कहा, क्योंकि वे सिर्फ अभियोजन पक्ष की दलीलों पर एक तरफा फैसला नहीं सुनाना चाहते थे। सबसे पहले उन्होंने अंजलि वाघमारे को कस्साब का वकील नियुक्त किया। लेकिन जब उन्हें पता चला कि वे इस मामले में एक गवाह की भी वकील हैं, तो उन्होंने अंजलि को कस्साब की पैरवी से हटा दिया और अब्बास काजमी को उसका वकील नियुक्त किया। हालांकि बाद में उन्हें भी अदालत से सहयोग न करने के आधार पर हटा दिया गया और केपी पवार को कस्साब का वकील नियुक्त किया गया।

न्यायमूर्ति तहलियानी इससे पहले भी कई हाई प्रोफाइल मामलों की सुनवाई कर चुके हैं। संगीत सम्राट कहे जाने वाले गुलशन कुमार के साथ-साथ उन्होंने ट्रेड यूनियन के नेता दत्ता सामंत की हत्या मामले की भी सुनवाई की, जिन्हें छोटा राजन गिरोह के गुंडों ने 1997 में गोली मार दी थी। न्यायमूर्ति तहलियानी बेहद कठिन परिस्थितियों में भी अपना धर्य व संयम बनाए रखने के लिए जाने जाते हैं। मुंबई हमले की सुनवाई के दौरान भी कई बार ऐसे मौके आए, जब अदालत का माहौल तनावपूर्ण हो जाता था। खास कर तब जब अभियोजन और बचाव पक्ष के बीच तीखी बहस हो जाती थी। लेकिन ऐसे वक्त में भी उन्होंने अपना आपा नहीं खोया और अपनी व्यवहार कुशलता से अदालत की गरिमा बनाए रखी।

वे मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए भी जाने जाते हैं, लेकिन इस क्रम में कभी मामले से जुड़े विभिन्न पहलुओं या तथ्यों की अनदेखी नहीं करते। जब तक मामला पूरी तरह से न निपटा लें, कोई छुट्टी न तो खुद लेते हैं और न ही अपने सहयोगियों को देते हैं। अदालत की सुनवाई स्थगित करने की दलीलों को भी वे सिरे से खारिज कर देते हैं। मुंबई हमलों की सुनवाई उन्होंने रिकॉर्ड एक साल से भी कम समय में पूरी की। इस दौरान उन्होंने दीवाली के दिन भी काम किया और उस दिन भी जब अदालत की सुनवाई नहीं थी। मामले जुड़े प्रशासनिक कार्य में भी उन्होंने आगे बढ़कर रुचि ली और इसे पूरा किया, ताकि मामले का निपटारा जल्द से जल्द किया जा सके। इसके लिए लोग उनके कायल हैं, लेकिन उनका यही रुख कई बार बचाव पक्ष के वकीलों के लिए सिरदर्द बन जाता है। उन्होंने तब भी अदालत की कार्यवाही स्थगित नहीं की, जब अब्बास काजमी ने मामले के अध्ययन के लिए थोड़ा वक्त मांगा था। न्यायाधीश तहलियानी से यह शिकायत फहीम अंसारी की वकील सबा कुरैशी को भी रही।

तेरह जनवरी, 2009 को वे मुंबई हमले से जुड़े मामले की सुनवाई के लिए न्यायाधीश नियुक्त होने के बाद लगभग हर दिन उन्होंने आर्थर रोड जेल जाकर वहां ट्रायल रूम के लिए चल रहे काम-काज का जायजा लिया, जिसे वातानुकूलित बनाया जा रहा था। 56 वर्षीय न्यायाधीश तहलियानी कई भाषाओं के जानकार हैं। वे जितनी अच्छी हिंदी और अंग्रेजी बोलते हैं, उतनी ही अच्छी मराठी भी। उन्हें उर्दू की भी काफी हद का जानकारी है, जिसका फायदा उन्हें मामले की सुनवाई के दौरान कस्साब से बातचीत में हुआ। राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मामलों में उनकी गहरी रुचि है और अक्सर रात में वे इंटरनेट के जरिये ऑनलाइन विदेशी अखबार पढ़ते हैं।

बतौर न्यायधीश मामले के पक्ष को लेकर वे कस्साब के साथ सख्ती से पेश आए तो कैदी के मानवाधिकारों को ध्यान में रखते हुए वे कभी उससे उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछना नहीं भूलते थे। अनुशासन व साफ-सफाई पसंद न्यायमूर्ति तहलियानी को बागवानी का भी शौक है। उनका परिवार मूलत: राजस्थान का रहने वाला है, जो आगे चलकर महाराष्ट्र के चं्रपुर जिले में बस गया। सिंधी परिवार में जन्मे तहलियानी ने नागपुर से दसवीं की परीक्षा पास की और फिर नागपुर विश्वविद्यालय के गोंदिया के एनएमडी कॉलेज से वाणिज्य एवं कानून में स्नातक की डिग्री ली। गोंदिया से ही उन्होंने बतौर अधिवक्ता प्रैक्टिस शुरू की, लेकिन बाद में चं्रपुर आ गए। फिर गढ़चिरौली, वाडसा और सिरोंचा में वे सरकारी वकील रहे। बतौर न्यायाधीश उनका कॅरियर 1987 में मुंबई की बां्रा अदालत में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के रूप में शुरू हुआ। एक दशक बाद यानी 1997 में उन्हें मुंबई की सत्र अदालत में सत्र न्याधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। फिर वर्ष 2000 में उन्हें शहर के दीवानी व सत्र न्यायाधीश के रूप में भी पदोन्न किया गया। उसी साल वे मुंबई हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार भी बनाए गए। विशेष न्यायाधीश के रूप में उन्होंने सीबीआई से जुड़े मामलों की भी सुनवाई की। मुंबई हमले में सजा सुनाने के दिन ही उन्हें चैन नसीब हुआ और मामले से जुड़े दस्तावेजों की फाइलें ले जाने से छुट्टी भी। उस दिन शाम को वे टहलने भी निकले।

1 टिप्पणियाँ:

अपूर्व ने कहा…

अपने धैर्य, गंभीरता और कार्य के प्रति समर्पण के द्वारा तहलयानी साहब ने एक मिसाल कायम की है..और आम भारतीय जो भारतीय न्यायपालिका के प्रति बड़ी आशा भरी दृष्टि से देखता है, के भरोसे को भी और मजबूत ही किया है...साधुवाद आपके लिये भी कम नही जो इतने श्रमसाध्य कार्य के द्वारा उनके जीवन के दूसरे पहलू यहाँ सामने रखे हैं..शुक्रिया!!