मंगलवार, 29 जून 2010

विवादों का अर्जुन

पच्चीस साल पुराना है जख्म, लेकिन अब भी हरा। दर्द और तकलीफ कहीं से भी कम होती नहीं दिखती। कहते हैं, वक्त हर घाव भर देता है; लेकिन यहां यह बात भी लागू नहीं हुई। जिंदगी वक्त के साथ आगे बढ़ती रही। दूसरी व्यस्तताओं और कामकाज ने कई बार जख्म से ध्यान हटा दिया, लेकिन टीस बरकरार रही। इन पच्चीस सालों में कई बार उठी टीस ने जख्म के हरे होने का एहसास कराया। पीड़ित न्याय की गुहार लगाते रहे। न्याय मिला भी उन्हें। पर पच्चीस साल बाद और वह भी आंशिक।

भोपाल की एक अदालत ने दो और तीन दिसंबर, 1984 की रात यूनियन कार्बाइड कंपनी के कारखाने से निकली जानलेवा गैस के मामले में कंपनी के तत्कालीन प्रमुख वारेन एंडरसन को दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई। निश्चय ही पिछले पच्चीस साल से इंसाफ की बाट जोह रहे पीड़ितों के लिए यह सजा तरह राहत देने वाली नहीं थी। लेकिन इस मामले में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और कांग्रेस की भूमिका पर उठे सवाल ने पीड़ितों का गुस्सा और भड़का दिया। आरोप है कि बतौर मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने एंडरसन को विदेश भगाया। तब न केवल राज्य में, बल्कि कें्र में भी कांग्रेस की सरकार थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। पूरे प्रकरण में अर्जुन सिंह की भूमिका संदेह के घेरे में है। कांग्रेस बचाव की म्रुा में है तो भाजपा सहित अन्य विपक्षी दल आक्रामक। अर्जुन सिंह से जवाब सभी मांग रहे हैं। लेकिन वे कहते हैं, उनके पास कहने के लिए कुछ है ही नहीं।

अस्सी वर्षीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अपने अब तक के लंबे राजनीतिक कॅरियर में बस कुछ दिनों के लिए पार्टी से अलग हुए। वे नेहरू-गांधी परिवार के करीबी रहे हैं, पर सोनिया गांधी के करीब नहीं रह पाए। कई मौके आए जब परिवार के प्रति वफादारी के बदले उन्हें बेहतर ईनाम की उम्मीद रही, लेकिन हुआ ठीक उल्टा। उन्हें और उनकी पत्नी सरोज देवी को इसका मलाल भी है। ‘अर्जुन सिंह : एक सहयात्री इतिहास काज् नाम से उनकी राजनीतिक जीवनी लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राम शरण जोशी ने वर्ष 2007 में अर्जुन सिंह को राष्ट्रपति नहीं बनाने के मुद्दे पर सरोज देवी को बड़ी बेबाकी से यह कहते हुए उद्धृत किया है, ‘अगर मैडम (सोनिया गांधी) उन्हें राष्ट्रपति बना देतीं, तो उनका क्या चला जाता?ज्

इससे पहले वर्ष 2004 में भी जब सोनिया ने प्रधानमंत्री पद पर अपनी दावेदारी छोड़ते हुए मनमोहन सिंह को आगे किया था, तब भी अर्जुन ¨सह आहत हुए थे। और तब, मंच पर सार्वजनिक रूप से उनकी आंखों से आंसू छलक आए थे, जब पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस हाईकमान ने उनकी बेटी वीणा सिंह को सीधी और बेटे अजय सिंह को सतना संसदीय क्षेत्र से टिकट देने से मना कर दिया। लेकिन इसके बावजूद पार्टी के एक अनुशासित कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने चुनाव के दौरान कांग्रेस के लिए प्रचार करने की बात कही।

अर्जुन सिंह को इस बात का भी मलाल है कि राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी को सार्वजनिक जीवन में सक्रिय करने में अहम भूमिका निभाने के बावजूद संप्रग अध्यक्ष ने कभी उनकी सेवाओं को वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति की कुर्सी से तो उन्हें दूर रखा ही गया; पार्टी में उनके बाद शीर्ष के दूसरे ताकतवर नेता का दर्जा भी नहीं दिया गया। लेकिन इन शिकायतों के बावजूद पार्टी व नेहरू-गांधी परिवार के लिए उनकी वफादारी कम नहीं हुई। उन्होंने राहुल गांधी को भविष्य के युवा प्रधानमंत्री ने पेश किया। तब इसे उनकी चाटुकारिता कहा गया, लेकिन आज वही राग मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस के दूसरे नेता भी अलाप रहे हैं।

संप्रग सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान अर्जुन सिंह को मानव संसाधन विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और तब उन्होंने लोगों को एकबार फिर मंडल कमीशन की सिफारिशों की याद दिला दी, जिसे लागू कर सरकारी नौकरियों में पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था और जिसके बाद पूरा देश सुलग उठा था। एकबार फिर उसी राह पर चलते हुए अर्जुन सिंह ने सरकारी व मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों में पिछड़ी जाति के छात्रों के लिए नामांकन में भी आरक्षण का प्रावधान किया। इस निर्णय के बाद एकबार फिर छात्र सड़कों पर उतर आए, लेकिन अर्जुन सिंह अपने फैसले से पीछे नहीं हटे। इसे कांग्रेस के लिए वोट बैंक बनाने और खुद को पिछड़ों का मसीहा बनाने की अर्जुन ¨सह की कोशिश के रूप में देखा गया।

एक राजनीतिज्ञ के रूप में अर्जुन सिंह के साथ विवाद अक्सर जुड़े रहे। मध्य प्रदेश के रेवा जिले के चुरहट से ताल्लुक रखने वाले अर्जुन सिंह के पिता राव शिव बहादुर सिंह भी राजनीति से जुड़े थे। 1980 के दशक में मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए उन पर चुरहट लॉटरी मामले में भी संलिप्तता के आरोप लगे। कहा गया कि उन्होंने नकली लॉटरी की व्यवस्था करने वालों की मदद की। उन पर उत्तर प्रदेश सरकार ने दहेज उत्पीड़न का मामला भी दर्ज किया है, जिसमें अभियोग उनकी प्रपौत्री के पिता ने लगाया है। पीवी नरसिम्हा राव सरकार में भी वे मंत्री थे, लेकिन बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने राव पर हिंदू विचारधारा की ओर झुकाव का आरोप भी लगाया। राव सरकार से इस्तीफे के बाद उन्होंने कांग्रेस भी छोड़ दिया और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के साथ मिलकर ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) का गठन किया। लेकिन पार्टी 1996 में लोकसभा चुनाव हार गई। उधर, कांग्रेस को भी हार का सामना करना पड़ा और वह सत्ता से बाहर हो गई। इसके बाद अर्जुन ¨सह और नारायण दत्त तिवारी दोनों कांग्रेस में लौट आए। उन पर संप्रग सरकार के पहले कार्यकाल में मानव संसाधन विकास मंत्री रहते हुए घाटे में चल रही शिक्षण संस्थाओं को भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय का दर्जा देने का आरोप है। वे तीन बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और एकबार पंजाब के राज्यपाल। हालांकि पंजाब के राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल काफी छोटा था, लेकिन इस बीच उन्होंने पंजाब में शांति बहाल करने के लिए राजीव-लौंगवाल समझौता पर सराहनीय कार्य किया। उन्हें वर्ष 2000 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का अवार्ड भी मिला।

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