रविवार, 6 नवंबर 2011

'हमें भी है सम्मान से जीने का हक'


जिंदगी बेहद खूबसूरत है, लेकिन कुछ लोगों के लिए उतनी ही मुश्किल। ये वे लोग हैं, जो बोल नहीं सकते, सुन नहीं सकते, देख नहीं सकते और न ही बिना पहियों की कुर्सी के सहारे चल सकते हैं। इन शारीरिक चुनौतियों के बावजूद वे अपनी दुनिया में खुश रहते हैं। लेकिन सामान्य लोगों का असहयोगात्मक रवैया उन्हें जो मानसिक पीड़ा देता है, वह इस शारीरिक परेशानी से कहीं अधिक होता है।

दिल्ली हाट में बीते सप्ताह आयोजित एक कार्यक्रम में शारीरिक चुनौतियों का सामना कर रहे कई बच्चों व बड़ों ने शिरकत की और सभी की एक ही पीड़ा थी, "समाज में उन्हें समान हक व सम्मान नहीं मिलता।" 35 वर्षीय आलोक सिक्का भी ऐसे ही लोगों में हैं, जो 'व्हील चेयर' से चलते हैं। बस से यात्रा करना उनके लिए मुश्किल होता है, क्योंकि चालक अक्सर उनके लिए बस नहीं रोकते। ये परेशानियां उनके साथ बचपन से हैं, लेकिन अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर पढ़ाई जारी रखते हुए उन्होंने एक मुकाम हासिल किया और आज वह गैर सरकारी संगठन 'एक्शन फॉर एबिलिटी डेवेलपमेंट एंड इंक्लूजन' (आदी) से जुड़े हैं।

शारीरिक चुनौतियों का सामना कर रहे बच्चों ने भी मौका मिलने पर हमेशा खुद को साबित किया है। कार्यक्रम में कालकाजी स्थित सरकारी माध्यमिक विद्यालय के मूक-बधिर बच्चों ने राष्ट्रगान प्रस्तुत कर यह दिखा दिया कि प्रतिभा शारीरिक सक्षमता की मोहताज नहीं है। लेकिन सामान्य लोगों का व्यवहार इनके प्रति हमेशा सकारात्मक नहीं होता।


राष्ट्रगान की धुन पर प्रस्तुति देने वाले बच्चों में से तीन भाई-बहन साफिया, फौजिया और अरशद ने संकेतों में बताया कि उन्हें सामान्य लोग हमेशा संदिग्ध लगते हैं, इसलिए वे अपनी आयु वर्ग के सामान्य बच्चों के साथ भी खेलना-कूदना पसंद नहीं करते। इस बारे में पूछे जाने पर स्कूल की प्रधानाचार्य रीना गौतम ने बताया, "ऐसे बच्चों का मन बड़ा कोमल होता है। उनके प्रति अधिक स्नेह एवं आत्मीयता से पेश होने की जरूरत है। लोगों का रवैया सकारात्मक न होने की वजह से उनका आशंकाओं से ग्रस्त होना स्वाभाविक है।"


तमाम तरह की शारीरिक चुनौतियों का सामना कर रहे ये लोग केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन स्वायत्त संगठन 'नेशनल ट्रस्ट' की ओर से आयोजित 'बढ़ते कदम' कार्यक्रम में पहुंचे थे, जिसका उद्देश्य ऐसे लोगों के प्रति सामाजिक रवैये में बदलाव लाना और सरकारी तथा निजी क्षेत्र को उनके अनुकूल व्यवस्थाएं बनाने के लिए प्रेरित करना है।

'नेशनल ट्रस्ट' की अध्यक्ष पूनम नटराजन के अनुसार, "यदि लोगों का रवैया इनके प्रति सहयोगात्मक हो तो ऐसे लोग भी सामान्य जिंदगी जी सकते हैं। आवाजाही सहित कई अन्य दिक्कतों और लोगों के असहयोगात्मक रुख की वजह से वे अधिकतर घरों में ही रहना पसंद करते हैं। इसमें बदलाव लाने और उनकी क्षमताओं को पहचानने की जरूरत है।"

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