शनिवार, 28 मार्च 2009

जया जाए ना

जयललिता क्या करेंगी! अंदाजा लगाना कठिन है। ्रमुक इस बार सत्ता विरोधी भावनाओं की चपेट में आ सकता है और देर-सबेर घरेलू कलह उस पर हावी होनेवाली है। जयललिता ने धर्य के साथ पांच साल इंतजार किया। उनसे सभी की आस बंधी है- वाम और दक्षिणपंथी भाजपा, दोनों की। पर जया तो कांग्रेस को इशारे कर रही हैं। उनकी माया अपरंपार है।

कुछ साल पहले तक कहा जाता था कि कें्र में सत्ता का रास्ता उत्तर भारत के दो प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार से होकर गुजरता है। कमोबेश आज भी यह बात लागू होती है। लेकिन क्षेत्रीय दलों के बढ़ते वर्चस्व ने दक्षिणी राज्यों को भी इतना ही महत्वपूर्ण बना दिया है। 2009 के लोकसभा चुनाव में दक्षिणी राज्य तमिलनाडु की कुछ ऐसी ही भूमिका रहने वाली है। न केवल चुनाव पूर्व गठबंधन, बल्कि मतदान के बाद सरकार गठन के निर्माण में यह राज्य किंगमेकर की भूमिका में सामने आ सकता है।

तमिलनाडु 39 लोकसभा सीट वाला राज्य है। राज्य की राजनीति में इस समय सक्रिय क्षेत्रीय दल हैं- जयललिता के नेतृत्व वाला एआईएडीएमके, मुख्यमंत्री करुणानिधि के नेतृत्व वाला ्रमुक, वाइको के नेतृत्व वाला एमडीएमके और रामदौस के नेतृत्व वाला पीएमके। इनमें ्रमुक का कांग्रेस जसे राष्ट्रीय दल के साथ गठबंधन है, जबकि एआईएडीएमके आठ दलों (सीपीआई, सीपीएम, फॉरवार्ड ब्लॉक, आरपीआई, टीडीपी, टीआरएस, जेडीएस, एआईएडीएमके) के तीसरे मोर्चे की एक महत्वपूर्ण भागीदार है, जो कांग्रेस और भाजपा दोनों से समान दूरी बनाए रखने की बात करती है। उसे एमडीएमके का साथ भी मिल सकता है, जबकि कांग्रेस-डीएमके गठबंधन में पीएमके साझीदार हो सकता है।

पिछले चुनाव में सरकार बनाने की कुंजी ्रमुक को मिली थी। एआईएडीएमके के खाते में कोई लोकसभा सीट नहीं आई थी। लेकिन इस बार उसकी स्थिति अपेक्षाकृत अधिक सुदृढ़ मानी जा रही है। समझा जा रहा है कि उसे सत्ता विरोधी भावना का फायदा मिल सकता है। साथ ही जयललिता का करिश्माई व्यक्तित्व भी इसमें कारगर साबित हो सकता है। दूसरी तरफ ्रमुक को सत्ता विरोधी भावना ङोलनी पड़ सकती है। राज्य में वह स्वयं सत्तासीन है, जबकि कें्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में एक महत्वपूर्ण भागीदार है। इसके अलावा इस बार के आम चुनाव में ्रमुक को करुणानिधि के करिश्माई व्यक्तित्व का लाभ भी नहीं मिलेगा। बीमारी एवं अधिक उम्र की वजह से इस बार चुनाव में करुणानिधि के बजाय उनके बेटे एमके स्तालिन कांग्रेस-्रमुक गठबंधन का नेतृत्व करेंगे और निस्संदेह, उन पर जयललिता का व्यक्तित्व भारी पड़ेगा। यही वजह है कि भाजपा भी लगातार तीसरे मोर्चे के ऐसे दलों पर नजर बनाए है, जहां से चुनाव बाद के गठबंधन में उसे मदद मिल सकती है। ऐसी किसी भी स्थिति में भाजपा एआईएडीएमके को अपने साथ लाना चाहेगी।

हालांकि, स्वयं जयललिता कांग्रेस से गठबंधन की इच्छुक हैं। उन्होंने कांगेस को इसके लिए संकेत भी किया। कहा, राज्य में डूबने और हारने से बचना है, तो ्रमुक का साथ छोड़ दें। बातों-बातों में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी से अपने बेहतर संबंधों की याद भी दिलाई। लेकिन कांग्रेस ्रमुक का साथ छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुई। उधर, कांग्रेस के प्रति जयललिता के रुझान को देखते हुए वाम दलों में बेचैनी महसूस की जा रही है।

चुनाव के दौरान राज्य में जो मुद्दे छाए रहेंगे, उनमें लिट्टे के खिलाफ श्रीलंका की सैन्य कार्रवाई में प्रभावित होने वाले तमिल नागरिकों का मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण है। कांग्रेस को छोड़कर सभी दल इसे लेकर अभियान चलाएंगे। एआईएडीएमके को इसका अपेक्षाकृत अधिक फायदा मिल सकता है, क्योंकि वह कें्र में भागीदार नहीं है। साथ ही म्रास उच्च न्यायालय में पुलिसिया कार्रवाई, बिजली की कमी, बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई और गिरती कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर भी वह सरकार को घेर सकती है। इसमें वाम दल भी उसके बराबर के सहयोगी होंगे। कुल मिलाकर, वाम दलों के साथ एआईएडीएमके इस बार चुनाव में डीएमके पर भारी पड़ सकती है। फिर भी, जनता के मन की थाह लेना तो मुश्किल है। इसलिए चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा, इसके लिए इंतजार करना होगा 13 मई का, जब तमिलनाडु की जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करेगी।

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