शनिवार, 28 मार्च 2009

आस-भरोस भागवत

मोहन राव भागवत राष्ट्रीय स्वयं संघ के नए सरकार्यवाह (प्रमुख) बनाए गए हैं। उन्होंने केएस सुदर्शन का स्थान लिया है। संघ के छठे सरकार्यवाह के रूप में उनकी नियुक्ति ऐसे समय में हुई है, जबकि लोकसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियां कमर कस चुकी हैं। चुनाव से ऐन पहले संघ के सरकार्यवाह के रूप में उनकी नियुक्ति के कई मायने हैं। खासतौर पर संघ की राजनीतिक शाखा भाजपा के लिए, जो चुनाव के बाद सत्ता में वापसी के प्रयास कर रही है।

माना जा रहा है कि मोहन राव भागवत संघ के साथ भाजपा के संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करेंगे। संघ के सरकार्यवाह के रूप में मोहन राव भागवत की नियुक्ति भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लाल कृष्ण आडवाणी के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। हालांकि शुरू में वह पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में आडवाणी के समर्थक नहीं थे, लेकिन बाद में कोई अन्य विकल्प नहीं मिलने के बाद उन्होंने अपनी असहमति वापस ले ली।

मोहन राव भागवत की गिनती संघ के कट्टर हिंदूवादी नेताओं के रूप में होती है। ऐसे में उनकी नियुक्ति का सीधा अर्थ यह भी है कि कट्टर हिंदूवादी भगवा ताकतों का प्रभाव व उनकी सक्रियता बढ़ेगी। भाजपा पर ऐसी ताकतों की पकड़ मजबूत होगी। ये ताकतें हिंदू वोट भाजपा की झोली में लाने का भरपूर प्रयास करेंगी, जिससे प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने में अंतत: आडवाणी को मदद मिलेगी। भागवत की कट्टर हिंदूवादी छवि और भाजपा में संघ की दखअंदाजी का यह भी अर्थ है कि अब पार्टी में नरें्र मोदी, आडवाणी सरीखे कट्टर नेताओं का बोलबाला बढ़ेगा। साथ ही पार्टी पर अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण, धारा 370 खत्म करने और समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर लौटने का दबाव बढ़ेगा।

पेशे से पशुचिकित्सक भागवत महाराष्ट्र के चं्रपुर जिले से आते हैं। शुरुआती वर्षो में ही वह संघ के प्रचारक बन गए। 59 वर्षीय भागवत गुरूजी गोलवलकर के बाद संघ के अब तक के सबसे कम उम्र के सरकार्यवाह हैं। अब भी वह आधुनिकता से कोसों दूर हैं और वैचारिक श्रेष्ठता को महत्व देते हैं। सूचना क्रांति के इस दौर में भी वह संगठन को आगे बढ़ाने के लिए परंपरागत दृष्टिकोण के समर्थन करते हैं और कर्यकर्ताओं को यकीन दिलाते हैं कि अगले दो दशक में भारत विश्वगुरू होगा।

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