शनिवार, 12 सितंबर 2009

नयी फसल के नये उमर

उमर अब्दुल्ला में दो ऐसे गुण हैं, जिनका आपस में दूर का संबंध है। वह बेहद संयत व समझदार हैं और बेहद संवेदनशील व जज्बाती भी। परमाणु करार पर विवाद के दौरान विश्वास प्रस्ताव पर उनका अतिसंक्षिप्त भाषण और पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर विधानसभा में दिया गया उनका छोटा, लेकिन सटीक व भावावेशित भाषण उन्हीं खूबियों पर प्रकाश डालते हैं। विभिन्न संकटों में उनका रवैया उतावलेपन का न होकर संयत व गंभीर होता है। वह नौजवान पीढ़ी के नेता हैं और इसलिए पुराने र्ढे से अलग भी हैं। सेक्स कांड पर विपक्ष के आरोप के बाद इस्तीफा देने की पेशकश करते हुए उनकी यह उक्ति, कि बेगुनाह साबित न होने तक मैं गुनाहगार हूं, भी आमतौर पर दी जाने वाली ऐसी दलील के कतई उलट थी।

विपक्ष के आरोप से आहत जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को इस्तीफा सौंप सबको सकते में डाल दिया। सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने की उपलब्धि हासिल करने वाले उमर अब्दुल्ला का यह कदम सभी के लिए अप्रत्याशित था। हालांकि राज्यपाल ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया और वह अपने पद पर बने हुए हैं।
बीते साल हुए विधानसभा चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस को बहुमत मिलने के बाद उन्होंने इसी साल जनवरी में राज्य की सत्ता संभाली थी। 38 साल की उम्र में उन्होंने सबसे युवा मुख्यमंत्री होने की उपलब्धि तो हासिल की, लेकिन यह ताज उनके लिए कांटों भरा साबित हुआ। सिर्फ छह महीने के कार्यकाल में राज्य की कानून-व्यवस्था बद से बदतर हुई। इस छह महीने में भारतीय सेना पर तीन महिलाओं के साथ बलात्कार के बाद उनकी हत्या सहित 15 लोगों की हत्या का आरोप लगा। राज्य को एक युवा मुख्यमंत्री से जिसकी उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हुई।
विपक्ष ने बिगड़ती कानून-व्यववस्था को मुद्दा बनाया और उन्हें एक अयोग्य मुख्यमंत्री करार दिया। विपक्ष की ओर से उनपर कई गंभीर आरोप लगाए गए। उन पर शोपियां में भारतीय सैनिकों द्वारा मलिाओं के अपहरण और उनके साथ बलात्कार व बाद में उनकी हत्या की वारदात पर पर्दा डालने का आरोप लगा। कहा गया कि उमर नई दिल्ली के दबाव में झुक गए और मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पहली परीक्षा में ही असफल साबित हुए। इस घटना ने मुख्यमंत्री के रूप में उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए।
विपक्ष ने 2006 के बहुचर्चित व राज्य की राजनीति में तूफान ला देने वाले सेक्स स्कैंडल में भी उनका नाम घसीटा। कहा गया कि नौकरी देने के नाम पर जिन नेताओं, मंत्रियों, वरिष्ठ अधिकारियों, सैनिकों ने लड़कियों का इस्तेमाल किया, उनमें उमर अब्दुल्ला का नाम भी शामिल है। विपक्षी नेता व राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग ने ऐसे लोगों की सूची में 102 नंबर पर उमर का नाम होना बताया। उन्होंने इसमें उमर के साथ-साथ उनके पिता फारूख अब्दुल्ला का नाम शामिल होने की भी बात कही।
यह आरोप उमर के लिए सदमे की तरह था। विपक्ष के आरोप को अपने चरित्र पर धब्बा बताते हुए उन्होंने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया और तय समय में इसकी जांच की मांग की। हालांकि सीबीआई इस सेक्स स्कैंडल की पहले से ही जांच कर रही है। सीबीआई सहित गृहमंत्री पी चिदंबरम ने फौरन इसमें उमर के शामिल नहीं होने के बयान दिए। खास बात उमर का इस्तीफे की पेशकश करते हुए दिया गया बयान था। हर राजनेता ऐसे मामलों में फंसते हुए यही कहता है कि आरोप साबित न होने तक मैं निर्दोष हूं। इसके उलट उमर ने नयी बात कही कि जब तक मैं बेगुनाह साबित नहीं हो जाता, तब तक मैं गुनाहगार हूं। इसका गहरा असर हुआ।
उमर को राजनीति विरासत में मिली, लेकिन मुख्यमंत्री तक का सफर आसान नहीं रहा। इसके लिए उन्होंने खासी मेहनत की। 1998 में उन्होंने राजनीति में कदम रखा। उसी साल हुए 12वीं लोकसभा के चुनाव में वह सांसद चुने गए। तब कें्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी और नेशनल कांफ्रेंस उसका हिस्सा। 1999 के लोकसभा चुनाव में भी वह चुने गए और जुलाई 2001 में उमर विदेश राज्यमंत्री बने। तब भी वह सबसे युवा कें्रीय मंत्री थे। अब उनकी नजर अगले साल राज्य में होने वाले विधानसभा चुना पर थी। जून 2002 में पिता फारूख अब्दुल्ला के स्थान पर नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष चुने गए। लेकिन 2002 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी बुरी तरह हार गई। यहां तक कि उमर भी परिवार की पारंपरिक विधानसभा सीट गांदेरबल गंवा बैठे। लेकिन इससे निराश व हताश हुए बगैर उन्होंने उन गलतियों को ढूंढ़ने की कोशिश की, जिसके कारण नेशनल कांफ्रेंस को हार का सामना करना पड़ा। इसका एक कारण उन्हें गुजरात दंगों के बाद भी राजग से जुड़े रहना लगा, क्योंकि दंगों के बाद मुस्लिम समुदाय भाजपा से बेहद नाराज था। इसे समझते हुए उन्होंने राजग से अलग होने में देर नहीं लगाई। इसके बाद लगातार चार साल तक वह पार्टी की मजबूती के लिए काम करते रहे। उनकी मेहनत का ही नतीजा रहा कि 2008 के विधानसभा चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और उमर राज्य के मुख्यमंत्री बने। नेकां और कांग्रेस के गठजोड़ में उमर की राहुल गांधी से निकटता का भी योगदान रहा।
एक अनुभवी राजनीतिज्ञ के रूप में उमर का व्यक्तित्व पिछले साल 22 जुलाई को देखने को मिला, जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार के विश्वास प्रस्ताव के दौरान उन्होंने सिर्फ दो सांसदों के साथ सरकार के पक्ष में मतदान कर कांग्रेस की निकटता हासिल कर ली। नेशनल कांफ्रेंस को कांग्रेस की निकटता का फायदा जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में हुआ, जिसके सहयोग से चुनाव बाद राज्य में उमर की सरकार बनी। वहीं, विश्वास प्रस्ताव के दौरान अपने भावुक भाषण से उन्होंने सबका दिल जीत लिया। अमेरिका के साथ परमाणु करार को जब सपा सहित कुछ अन्य दलों के नेता मुसलमानों के लिए खतरनाक बता रहे थे, उमर ने यह कहकर तमाम आशंकाओं पर विराम लगा दिया, ‘मैं एक मुसलमान हूं और मैं एक भारतीय हूं, और मैं इन दोनों में कोई भेद नहीं देखता हूं। मैं नहीं जानता कि हमें परमाणु करार से क्यों डरना चाहिए.. भारतीय मुसलमानों का दुश्मन अमेरिका या इस तरह का कोई करार नहीं, बल्कि गरीबी, भूख, विकास का अभाव और इन सबके लिए आवाज नहीं उठाना है.. ज्
जम्मू-कश्मीर को लेकर भी उमर का एक अलग रुख रहा है। भारत-पाक के बीच जम्मू-कश्मीर को एक महत्वपूर्ण मुद्दा बताते हुए कें्र के विरोध के बावजूद मार्च 2006 में वह पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से मिलने इस्लामाबाद जा पहुंचे। यह जम्मू-कश्मीर की राजनीति में सक्रिय मुख्यधारा के किसी नेता और पाकिस्तान सरकार के बीच अपने तरह की पहली बातचीत थी।
10 मार्च 1970 को फारूख अब्दुल्ला व ब्रिटिश मां की संतान के रूप में पैदा हुए उमर अब्दुल्ला की स्कूली शिक्षा श्रीनगर के बर्न हॉल स्कूल में हुई। इसके बाद मुंबई के प्रतिष्ठित सिदेनाम कॉलेज से उन्होंने बी.काम. और स्कॉटलैंड के यूनीवर्सिटी ऑफ स्ट्रैथक्लाइड से एमबीए किया।

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