शनिवार, 12 सितंबर 2009

वाम का काफी काम तमाम

अपने गढ़ में माकपा और वाम मोर्चे की सबसे बड़ी हार हुई। नंदीग्राम के बाद से गिरती लोकप्रियता और ममता के करिश्मे ने यह चमत्कार किया।

पश्चिम बंगाल में इस बार चौंकाने वाले चुनाव परिणाम सामने आए हैं। पिछले तीन दशक से सत्ता पर काबिज वाम मोर्चा पहली बार अपने ही गढ़ में पिछड़ गया। विपक्ष की एकजुटता ने वाम अजेयता के मिथ को चूर कर दिया। चुनाव में ममता दीदी का जादू सिर चढ़कर बोला। दीदी के तृणमूल ने कांग्रेस के साथ मिलकर वामपंथी दलों को 42 में से केवल 15 सीटों पर समेटकर रख दिया। वाम मोर्चे को महज 43.4 प्रतिशत वोट मिले। 1977 के बाद यह पार्टी का सबसे खराब प्रदर्शन है। कांग्रेस के छह और तृणमूल के 19 सीटों के साथ गठबंधन की सीटों की संख्या 25 पहुंच गई। अब तृणमूल की नजर राज्य में 2011 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर है।
इस चुनाव में विपक्षी दलों की एकजुटता वाम मोर्चे की हार का सबसे बड़ा कारण बनी। वाम दलों को अब तक गैर-वाम वोटों के बिखराव का फायदा मिलता रहा। यह बात ममता की समझ में आ चुकी थी, इसलिए वाम दलों को पटखनी देने के लिए उन्होंने कांग्रेस-तृणमूल-भाजपा का महाजोत तैयार करने की कोशिश की। हालांकि उन्हें इसमें कामयाबी नहीं मिली, लेकिन उन्होंने गैर-वाम वोटों को अपनी झोली में करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त कर ली।
चुनाव में वाम दलों के खराब प्रदर्शन का कारण पश्चिम बंगाल सरकार की लोकप्रियता में गिरावट रही। 2006 में हुए राज्य विधानसभा के मुकाबले इस बार राज्य सरकार की लोकप्रियता 66 प्रतिशत से गिरकर 58 प्रतिशत रह गई। नंदीग्राम और सिंगूर ने भी वाम दलों को नुकसान पहुंचाया। हालांकि लोग औद्योगिकीकरण के खिलाफ नहीं दिखे और उन्होंने राज्य से नैनो की विदाई पर अफसोस भी जताया। लेकिन पूरे मामले को राज्य सरकार ने जिस तरह निपटाया, उससे ‘मां, माटी, मानुषज् का ममता का नारा कारगर हुआ।
वाम दलों को इस चुनाव में सबसे अधिक नुकसान गरीब मजूदरों और किसानों के क्षेत्र में हुआ, जबकि यही इलाके उनके गढ़ माने जाते हैं। हालांकि वाम दलों को इस चुनाव में वेतनभोगी तबके के अधिक वोट मिले, लेकिन यह इतना नहीं कि ग्रामीण क्षेत्रों में हुए नुकसान की भरपाई हो सके। वाम मोर्चे को इस बार मुस्लिम समुदाय से भी झटका मिला। मुसलमान, जो राज्य की आबादी का तकरीबन एक चौथाई हैं, पिछले कुछ चुनाव से वाम दलों को वोट देते आ रहे थे। लेकिन इस बार वाम दलों से उनका मोहभंग देखा गया और उन्होंने तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन को तरजीह दी।

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