बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

अतीत के साए में पीजे थॉमस का वर्तमान

2जी स्पेक्ट्रम मामला मीडिया में छाया रहा। इस सिलसिले में कई नाम सामने आए। कई लोगों को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी तो कुछ फिलहाल कठघड़े में हैं। इन्हीं में से एक नाम है पीजे थॉमस का। सतर्कता विभाग के आयुक्त के रूप में न केवल उनका कार्यकाल, बल्कि उनकी नियुक्ति भी काफी चर्चित और विवादास्पद रही। लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित यूपीए के सभी नुमाइंदे उनके बचाव में मुस्तैदी से खड़े रहे।

वे पहले संचार विभाग में सचिव रह चुके हैं और इसलिए जब 2जी स्पेक्ट्रम का मामला सामने आया तो आशंका भी उठी कि सतर्कता विभाग के आयुक्त के रूप में वे कहीं इसकी जांच को प्रभावित न करें। हालांकि उन्होंने बार-बार पूरे मामले से खुद को अलग किया और घोटालों के आरोपों को खारिज करते हुए पूरे मामले में निष्पक्षता बरतने का दावा किया। तमाम आरोपों से इनकार करते हुए उन्होंने खुद को नैतिक रूप से पाक साफ बताया। अपने बचाव में वे कहते हैं कि यह बहुत पुराना मामला है और उनके कार्यकाल में हुआ भी नहीं। इसलिए नैतिक रूप से भी इस्तीफे का सवाल ही पैदा नहीं होता। लेकिन विपक्ष उनकी एक सुनने को तैयार नहीं है। विपक्ष को न तो उन पर भरोसा है और न ही उनके दावों पर। इस बीच सुप्रीम कोर्ट का रवैया भी इस मामले में बेहद तल्ख हो गया है।

अदालत का साफ कहना है कि एक ऐसा व्यक्ति, जिसके खिलाफ खुद आपराधिक मामला लंबित हो, वह सीबीआई जांच की निगरानी कैसे कर सकता है? विपक्ष इसी सवाल को लेकर लगतार थॉमस का विरोध करता रहा है और सुप्रीम कोर्ट की इस तल्खी के बाद निश्चित रूप से उसका पक्ष मजबूत हुआ है। वहीं, सरकार को फजीहत का सामना करना पड़ा है। ऐसे में अब तक थॉमस के बचाव में खड़ी सरकार भी विपक्ष, सुप्रीम कोर्ट और मीडिया के दबाव के आगे झुकती नजर आ रही है। सरकार इस मामले में और अधिक शर्मनाक स्थिति का सामना करने से बचना चाहती है और इसलिए संभव है कि आगे हो सकने वाली फजीहत से सरकार को बचाने के लिए थॉमस अगले एक-दो दिन में इस्तीफा दे दें। हालांकि अब तक पूरे मामले में उनके तेवर व्रिोही से बने रहे और वे बार कहते रहे कि अपने पद से इस्तीफा नहीं देंगे।

गौरतलब है कि थॉमस पर 1991 में केरल में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय के सचिव के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान बाजार मूल्य से अधिक कीमत पर पाम ऑयल का आयात करने का आरोप है, जिससे सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगा। इस मामले में उन पर आपराधिक मामला भी चल रहा है और कोर्ट का भी यही कहना है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामला लंबित हो, वह सीवीसी के रूप में कैसे काम कर सकता है? उन पर संचार सचिव रहते हुए भी 2जी स्पेक्ट्रम मामले को दबाने का आरोप है। कोर्ट ने इस पर भी सवाल उठाए हैं कि 2जी स्पेक्ट्रम धांधली के वक्त भी जब वे संबंधित विभाग में एक महत्वपूर्ण पद पर थे तो अब सीवीसी के रूप में इसी मामले की सीबीआई जांच की निगरानी वे कैसे कर सकते हैं?

बहरहाल, विपक्ष सीवीसी के रूप में उनकी नियुक्ति से भी सहमत नहीं था। सीवीसी के रूप में उनकी नियुक्ति इसी साल सितंबर में हुई थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में गृह मंत्री पी चिदंबरम और विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज के तीन सदस्यीय पैनल ने सीवीसी के रूप में संचार विभाग के पूर्व सचिव पीजे थॉमस को चुना था। हालांकि सुषमा स्वराज उनके चयन को लेकर सहमत नहीं थीं, लेकिन प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने थॉमस के नाम पर ही मुहर लगाई। चयन के लिए तीन सदस्यीय पैनल के सामने भी तीन नाम थे, जिसमें एक के मुकाबले दो मत से फैसला थॉमस के हक में हुआ। विपक्ष सीवीसी के रूप में थॉमस को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। पाम ऑयल घोटाले का हवाला देकर उसने किसी ऐसे व्यक्ति को इस पद पर बिठाने का विरोध किया था, जिसके दामन पर भ्रष्टाचार के छींटे हों। यही वजह रही कि विपक्ष ने 14वें सीवीसी के रूप में राष्ट्रपति भवन में आयोजित थॉमस के शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार किया। विपक्ष का कोई भी सदस्य समारोह में नहीं पहुंचा। लेकिन तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने थॉमस का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा था, ‘हमने बिल्कुल सही किया। तीन लोगों की सूची में से हमने सर्वश्रेष्ठ का चयन किया।ज्

साठ वर्षीय थॉमस 1973 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। केरल में उन्हें सचिव के रूप में वित्त, उद्योग, कृषि, काूनन एवं न्याय और मानव संसाधान विकास विभाग में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी गई। कोझिकोड में भारतीय प्रबंधन संस्थान की आधारशिला रखने में भी उनका अहम योगदान था। तब उन्होंने संस्थान के निदेशक के रूप में भी अपनी सेवा दी थी। 2007 में वे केरल सरकार के मुख्य सचिव बने। करीब दो साल तक उन्होंने इस पद पर अपनी सेवा दी। जनवरी, 2009 में उन्होंने कें्र का रुख किया और संसदीय कार्य मंत्रालय में सचिव की जिम्मेदारी संभाली। बाद में वे संचार सचिव भी बने। लेकिन एक साल बाद ही कें्र ने उन्हें सतर्कता विभाग के आयुक्त की जिम्मेदारी सौंप दी।







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