शनिवार, 28 मार्च 2009

वरुण ने खोला गटर-गेट

वरुण गांधी का व्यक्तित्व एकाएक राष्ट्रीय हो गया। एक भाषण ने उन्हें जो प्रसिद्धि दी, वह अपूर्व। अब लोग कहते रहें कि उन्होंने सांप्रदायिक उन्माद पैदा किया। जहर उगला आदि। बदले में उन्हें जो मिला, वह खुद उनके लिए कल्पनातीत था। भाजपा के अब के लाड़ले। उनके पीछे वह मुस्तैद खड़ी है।

एक भड़काऊ भाषण और सबकी आंखों का तारा। भारतीय जनता पार्टी में वरुण गांधी का आज यही स्थान है। इस भड़काऊ और सांप्रदायिक भाषण से पहले वरुण गांधी जाने तो जाते थे, पर राजनीति में उनकी जगह नाकुछ ही थी। लेकिन आज उन्हें हर कोई जानता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से देशभर में लोगों ने उनके ‘जहरीलेज् भाषण को सुना। उन्हें सुनने और जानने के लिए लोगों ने इंटरनेट पर हजारों बार क्लिक किया। ब्लॉग के माध्यम से वरुण के भाषण पर अंतर्राष्ट्रीय चर्चा होने लगी।
एक संप्रदाय विशेष के खिलाफ हमलावर तेवर अपनाने के बाद वरुण ने अंतर्राष्ट्रीय छवि तो हासिल की ही, भाजपा में हिंदू स्वाभिमान के नए प्रतीक के रूप में उभरे, जिसके लिए वह जानी जाती है। चुनाव आयोग द्वारा उन्हें सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का दोषी करार दिए जाने और लोकसभा उम्मीदवार नहीं बनाने की सलाह देने के बावजूद भाजपा न केवल दृढ़ता से उनके साथ खड़ी है, बल्कि हर तरह से उनका बचाव कर रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता से लेकर अध्यक्ष तक आयोग को टका सा जवाब दे चुके हैं कि उसे यह सुझाव देने का हक नहीं है।
लेकिन कुछ साल पहले तक यही स्थिति नहीं थी। 2006 में मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद जब शिवराज सिंह चौहान ने विदिशा संसदीय सीट छोड़ी, तो यहां से वरुण को उम्मीदवार बनाने की चर्चा जोरों पर थी, पर पार्टी ने इनकार कर दिया। लेकिन आज वही वरुण पार्टी में स्टार बनकर उभरे हैं। अचानक उनका कद नरें्र मोदी सरीखे भाजपा के उग्र हिंदूवाद के समर्थकों के समकक्ष जा खड़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य हिस्सों से पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार के लिए उन्हें बुलाया जा रहा है।
‘लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्सज्, जहां से वरुण ने पढ़ाई पूरी की, ने उनसे नाता तोड़ लिया। तो क्या हुआ? भाजपा और भगवा ताकतों से तो उनके संबंधों की एक नई शुरुआत हुई है। सभी ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। बताया जाता है कि वरुण जिस मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं, उसमें 10 हजार से ज्यादा एसएमएस स्टोर करने की क्षमता है। जब वह पिलीभीत के लिए चले थे, तो उसमें आठ एसएमएस ही सेव थे। लेकिन जब वह दिल्ली लौटे तो इनबॉक्स फुल हो चुका था। उनके लिए बधाइयों का तांता लगा था। बधाई देने वालों में संघ प्रमुख, कांची के शंकराचार्य, श्री-श्री रविशंकर, मोरारी बापू और अंबानी बंधु सहित कई उद्योगपति शामिल थे। उनके समर्थन और उत्साहवर्धन के लिए 800 जिलों से फैक्स आए। करीब 37 हजार लोगों ने उन्हें देखने-सुनने के लिए यूट्यूब पर क्लिक किया। ऐसे में भाजपा भला, कब तक वरुण के बयानों से यह कहकर किनारा करती कि ये उनके अपने विचार हैं।
वास्तव में गठबंधन राजनीति की मजबूरी में जबकि पार्टी को अपने मूल मुद्दों से पीछे हटना पड़ा और प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए लाल कृष्ण आडवाणी को धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ना पड़ा, पार्टी को भी एक ऐसे नेता की तलाश थी, जो उग्र हिंदूवाद की उनकी विचारधारा को खुलेआम सबके सामने रख सके। साथ ही कांग्रेस द्वारा युवाओं को लुभाने की कमान जब राहुल को सौंपी गई, तो कहीं न कहीं भाजपा को भी एक ऐसे ही नेता की जरूरत थी, जो वरुण के रूप में पूरी हो गई।

1 टिप्पणियाँ:

Dr. Anil Kumar Tyagi ने कहा…

वरुण गांधी ने तो 100-200 लोगों के समने अपना भाषण दिया होगा, लकिन देशभक्त मीडिया ने तो पूरे विश्व में प्रसारित कर दिया। भारत में यदि मीडिया जैसे विवेकी देशभक्त होगें तो देशद्रोही की कोई आवश्यकता नही।