शनिवार, 18 अप्रैल 2009

चीं-चीं पकड़े गए तो खीं-खीं

फिल्म उद्योग में ‘बिरार का छोकराज् के नाम से मशहूर हैं गोविंदा। कई साल तक फिल्मों में अभिनय के बाद उन्होंने राजनीति का रुख किया। शायद शत्रुघ्न सिन्हा, जयाप्रदा, जया बच्चन और किसी जमाने में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के राजनीति से जुड़ाव ने गोविंदा को भी राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया। लेकिन अभिनय की दुनिया में भले ही उन्होंने खूब नाम कमाया हो, कई सुपरहिट फिल्म दी हो, राजनीति में वह कुछ खास नहीं कर सके।
अपनों के बीच चीं-चीं के नाम से जाने जाने वाले गोविंदा ने 2004 में राजनीतिक पारी की शुरुआत की। कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की और उत्तर मुंबई से पार्टी के उम्मीदवार बने। जनता और पार्टी को उनसे बहुत सी अपेक्षाएं थी। लेकिन उन्होंने केवल पार्टी की उम्मीद पूरी की, जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। भाजपा उम्मीदवार व तत्कालीन कें्रीय मंत्री राम नईक को उन्होंने रिकॉर्ड मतों से हराया। माना जाता है कि गोविंदा की जीत और राम नईक की हार सुनिश्चित करने में उत्तर मुंबई संसदीय क्षेत्र के गुजराती मुस्लिम समुदाय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसलिए इसे भाजपा के प्रति उनके आक्रोश के रूप में भी देखा जा सकता है, जिसका लाभ गोविंदा को मिला।
लेकिन यह अभिनेता जनता से मिले प्रेम और उनके भरोसे को बरकरार नहीं रख पाया। फिल्मों में गरीब, मजबूर और बेबस लोगों के मसीहा के रूप में सामने आने वाले गोविंदा ने वास्तविक धरातल पर कभी अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों की सुध नहीं ली। क्षेत्र के विकास तो दूर उन्होंने एकबार भी अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे की जरूरत नहीं समझी। 2004 में चुनाव मैदान में उतरने से पहले उन्होंने ‘आवास, प्रवास, स्वास्थ्य और ज्ञानज् का नारा दिया था, लेकिन सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने अपने ही नारे को भुला दिया।
जनता विकास और मदद को तरसती रही और अभिनेता सांसद न जाने कहां गायब रहे। यही वजह रही कि उनके क्षेत्र के लोगों ने अपने ही सांसद की गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज करा दी। दरअसल, जुलाई 2005 में जब मुंबई बारिश के पानी में डूब रहा था, उत्तर मुंबई के हजारों लोगों ने बड़ी आस लेकर गोविंदा को ढूढं़ने और उनसे मिलने की कोशिश की, लेकिन लोगों को उनका कहीं अता-पता नहीं चला। नाराज लोगों ने अपने सांसद के खिलाफ गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज करा दी।
और तो और, पांच साल के संसदीय कार्यकाल में संसद सत्र के दौरान उनकी उपस्थिति नाम मात्र की रही। इस दौरान न तो उन्होंने किसी चर्चा में भाग लिया और न ही कोई सवाल किया। सांसदों को अपने क्षेत्र के विकास के लिए जो राशि मिलती है, शुरुआती दिनों में गोविंदा ने उसका भी उपयोग नहीं किया। अखबारों, समाचार चैनलों पर यह खबर चली तब उन्हें इसकी सुध आई। लेकिन जल्द ही वह दोबारा इस बात को भूल गए। उत्तर मुंबई के दूर-दराज के क्षेत्रों के लोग अब भी पानी, बिजली और सड़क की समस्या से जूझ रहे हैं।
इसके अलावा उन्होंने अपने विवादास्पद बयान से कांग्रेस और महाराष्ट्र में उसकी सहयोगी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के लिए भी मुश्किल खड़ी की। उन्होंने मुंबई में ‘डांस बारज् पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का विरोध किया, जबकि यह निर्णय महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ उनकी पार्टी कांग्रेस और एनसीपी ने ही लिया था। इस तरह गोविंदा ने न केवल अपने क्षेत्र की जनता, बल्कि पार्टी को भी नाराज किया। ऐसे में उनका टिकट कटना तो तय ही था।
तमाम आलोचनाओं के बीच जनवरी 2008 में गोविंदा ने कहा था कि वह अब राजनीति नहीं करेंगे और पूरा समय अपने अभिनय करियर को देंगे, लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही वह राजनीति में दोबारा उतरने का अपना मोह नहीं छोड़ पाए। जो गोविंदा मुसीबत के समय अपने क्षेत्र के लोगों को ढूंढ़े नहीं मिल नहीं रहे थे, वह होली के समय अपने आवास पर लोगों के बीच रुपए बांटते पाए गए। उनके इस कदम ने साफ कर दिया था कि वह दोबारा चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। लेकिन पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। उसे भलीभांति अंदाजा था कि उत्तर मुंबई की जनता में गोविंदा के प्रति नाराजगी सिर चढ़कर बोल रही है। यही वजह रही कि इस सिने अभिनेता को दरकिनार कर पार्टी ने उत्तर मुंबई से शिवसेना से कांग्रेस का रुख करने वाले संजय निरुपम को टिकट दिया।

1 टिप्पणियाँ:

अजय कुमार झा ने कहा…

bilkul sahee bat kahee hai aapne waise bhee abhineta se neta bane logon mein kuchh hee aise hue jo khud ko sahee sabit kar paaye . theek hee hua jantaa ko chhutkaaraa mila , govindaa naachein gaayein unke liye wahee achha hai....