बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

बखटके खांडू

महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार। हरियाण में वह सरकार बनाने की राह पर। लेकिन इन सबसे अलग और ऊपर अरुणाचल। कांग्रेस जहां महाराष्ट्र में बमुश्किल कामचलाऊ बहुमत जुटा पाई और हरियाणा में छह सीटें कम रह गई, वहीं अरुणाचल में उसने दो तिहाई बहुमत हासिल किया। यह सब करिश्माई दोर्जी खांडू का कमाल था। उनके नेतृत्व में कांग्रेस का कायाकल्प हो गया। इसलिए महाराष्ट्र और हरियाणा में जहां आलाकमान नेता चुनने की मशक्कत में पड़ा है, वहीं खांडू सर्वमान्य रूप से नेता चुने गए।

तीन राज्यों, महाराष्ट्र, हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव परिणाम से कांग्रेस उत्साहित है। हो भी क्यों न, हर जगह लोगों ने पिछले पांच साल के शासन को कमोवेश ठीकठाक मानते हुए दोबारा शासन का जनादेश जो दिया। हालांकि हरियाणा की बहुमत से छह सीटें कम की जीत ने कांग्रेस का उत्साह थोड़ा फीका जरूर किया, लेकिन अरुणाचल की दो तिहाई बहुमत से जीत ने विजय के जश्न को बहुत फीका होने से बचा भी दिया। अरुणाचल में कांग्रेस को यह ऐतिहासिक जीत मिली दोर्जी खांडू के नेतृत्व में, जिन्होंने करीब ढाई साल पहले अप्रैल, 2007 में बतौर मुख्यमंत्री राज्य की सत्ता संभाली थी।
खांडू ने अप्रैल, 2007 में तब मुख्यमंत्री का पद ग्रहण किया था, जब गोगांग अपांग के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के विरोध में पार्टी के अपने ही विधायक खड़े हो गए थे। अपांग पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए नेतृत्व परिवर्तन की मांग को लेकर कांग्रेसी विधायकों ने दिल्ली में डेरा जमा लिया था। तब साफ लग रहा था कि अगर कांग्रेस ने नेतृत्व के इस मुद्दे को तत्काल नहीं सुलझाया तो पार्टी की अंतर्कलह उसे ले डूबेगी। पार्टी आलाकमान ने भी मामले की गंभीरता समझी और अरुणाचल में कांग्रेस को इस संकट से उबारने का जिम्मा दोर्जी खांडू को सौंपा। खांडू ने पिछले ढाई साल में राज्य में कांग्रेस को एक सफल नेतृत्व दिया, जिसका परिणाम विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिले दो तिहाई बहुमत के रूप में सामने आया।
अरुणाचल की जीत केवल कांग्रेस के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि देश के लिए भी उतनी ही अहम है। चीन की सीमा से सटा यह प्रदेश दोनों देशों के आपसी संबंधों को लेकर काफी संवेदनशील रहा है। चीन बार-बार अरुणाचल के कुछ हिस्सों को अपने नक्शे में दर्शाता रहा है। वह तिब्बतियों के धर्म गुरू दलाई लामा ही नहीं, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भी अरुणाचल दौरे पर सवाल उठाता रहा है। ऐसे मौकों पर खांडू ने चीन को दो टूक जवाब दिया। उन्होंने कहा, ‘अरुणाचल भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और रहेगा। हमें उस वक्त रक्षात्मक रवैया अपनाने की कोई जरूरत नहीं है, जब चीन इसे लेकर अनावश्यक शोर मचाता है। दलाई लामा के अरुणाचल दौरे को लेकर भी चीन को किसी तरह की आपत्ति जताने का हक नहीं है।ज्
खांडू के नेतृत्व में प्रदेश की जनता ने जिस उत्साह से चुनाव में भाग लिया और अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया, वह भी चीन के लिए करारा जवाब है। इससे पहले 2004 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने 70.21 प्रतिशत मतदान किया था, जबकि इस बार मतदान का प्रतिशत 72 फीसदी रहा। साफ है कि लोगों ने उनमें भारत से अलगाव की भावना जसे चीन के मिथ्या प्रचार को ठेंगा दिखा दिया। चीन की तमाम कोशिशों के बावजूद मुख्यमंत्री की ही तर्ज पर जनता ने भी बता दिया कि उनकी आस्था भारतीय लोकतंत्र में है, क्योंकि वे स्वयं को इसका अभिन्न हिस्सा मानते हैं। निश्चय ही लोगों में यह भावना विकसित करने में खांडू के योगदान को कमतर नहीं आंका जा सकता।
तीन मार्च, 1955 को अरुणाचल के गांगखर गांव में स्व. लेकी दोर्जी के घर में जन्मे खांडू ने राजनीति से पहले सेना के खुफिया विभाग में सात साल तक सेवा दी। खासकर 1971 में बांग्लादेश युद्ध के समय उनकी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय रही, जिसके लिए उन्हें गोल्ड मेडल भी दिया गया। लेकिन सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यो में शुरू से ही उन्हें विशेष रुचि रही। यही वजह है कि सेना में रहते हुए भी उनका मन सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यो से अलग नहीं हुआ। 1980 तक वह तवांग जिले में लोगों के कल्याणार्थ जुटे रहे। 1982 में वह सांस्कृतिक व को-ऑपरेटिव सोसाइटी के अध्यक्ष बने और दिल्ली में चल रहे एशियाड खेलों में अरुणाचल प्रदेश के सांस्कृतिक दल का प्रतिनिधित्व किया। उनके नेतृत्व में अरुणाचल ने बेहतर प्रदर्शन किया और उसे सिल्वर मेडल मिला।
इस बीच वह पश्चिमी कमांग जिला परिषद के उपाध्यक्ष चुने गए और उन्होंने क्षेत्र में कई विकासात्मक काम किए। 1987-90 तक उन्होंने दूर-दराज के क्षेत्रों में जलापूर्ति, विद्युत, परिवहन व्यस्था दुरुस्त करने और स्कूलों व धार्मिक संस्थाओं के निर्माण पर काम किया। 1990 में वह पहली बार विधनसभा के लिए चुने गए और इसके बाद उनका राजनीतिक सफर रुका नहीं। उन्होंने राज्य में हुए हर विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की और इस बीच कई मंत्रालयों का दायित्व संभाला। नौ अप्रैल, 2007 को कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की बागडोर थमाई, जिसकी जिम्मेदारी भी उन्होंने बखूबी निभाई।
सामाजिक कार्यो के प्रति उनका विशेष लगाव राज्य की बागडोर संभालने के बाद स्वतंत्रता दिवस पर दिए गए उनके भाषण से भी झलकता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम स्वयं को गरीबी, बीमारी, असमानता, सामाजिक अन्याय, असहिष्णुता और भ्रष्टाचार के जंजीर से आजाद करने के लिए दिन-रात मेहनत करें। भूख और गरीबी की जंजीर तोड़े बगैर हम सच्ची स्वतंत्रता को महसूस नहीं कर सकते। प्रदेश में लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि विधानसभा चुनाव में वह निर्विरोध चुने गए।

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