मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

नॉट स्टुपिड नशीद

मोहम्मद नशीद लड़ाकू हैं, यह बात वे सब जानते हैं, जो मालदीव में लोकतंत्र के लिए उनके जुझारूपन से परिचित हैं। कई साल जेल में, निर्वासन में बिताने के बाद वह अंतत: जीते और मालदीव के निर्वाचित राष्ट्रपति भी बने। लेकिन वह मानवीय व सामाजिक सरोकारों वाले व्यक्ति हैं और इसमें अंतर्राष्ट्रीय चिंताएं भी शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा नुकसान उठाने वाले देशों में मालदीव भी होगा। पर्यावरण में बिगाड़ रोकने के लिए नशीद अलख जगाने में लगे हैं। उन्होंने इसके लिए अपने मंत्रिमंडल की बैठक सम्रु के गहरे पानी के अंदर की, ताकि दुनिया का ध्यान इस विकराल समस्या के प्रति आकर्षित हो। असंवेदनशील और नादान लोगों के आज के समय में वह एक संवेदनशील और समझदार राजनेता हैं। ऐसा एक सम्मान वह पा भी चुके हैं।


आज सारी दुनिया जलवायु परिवर्तन के खतरों को लेकर सहमी नजर आ रही है। दुनिया भर से इसको लेकर कुछ सार्थक प्रयास करने की बात कही जा रही है, लेकिन इस दिशा में कारगर कदम क्या हो, इसे लेकर सहमति नहीं बन पा रही। ऐसे में इस खतरे की ओर समूची दुनिया का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने। उन्होंने इसके लिए एक अनोखा तरीका ढूंढ निकाला। सम्रु के अंदर कैबिनेट की बैठक बुलाई और उसमें वैश्विक स्तर पर कार्बन का उत्सर्जन कम करने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किया। नशीद इसे दिसंबर में कोपेनहेगन में होने वाले संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन से संबंधित सम्मेलन में पेश करेंगे। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल, जो 2012 में समाप्त हो रहा है, के स्थान पर एक नए प्रस्ताव पर सहमति बनाना है।
नशीद सौ फीसदी मुस्लिम आबादी वाले मालदीव के लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित पहले राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने वहां न सिर्फ लोकतंत्र को मजबूत किया, बल्कि सम्रु से सटे इस छोटे से द्वीपसमूह को जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान से बचाने की कवायद भी शुरू की। मालदीव उन चंद द्वीप देशों में है, जिन्हें जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा खतरा है। मालद्वीपीयन द्वीप सम्रु तल से केवल 1.5 मीटर ऊपर है और जलवायु परिवर्तन से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय पैनल आगाह कर चुका है कि यदि ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को नहीं रोका गया तो 21वीं सदी के अंत तक सम्रु के जल स्तर में आधे मीटर की बढ़ोत्तरी हो सकती है और आने वाले दिनों में मालदीव जसे-द्वीप देश पानी में समा जाएंगे।
मोहम्मद नशीद भी कहते हैं कि यदि इस दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले दिनों में हमारे नाती-पोते इस द्वीपसमूह को पानी में विलीन पाएंगे। वह जलवायु पविर्तन के खतरों को आतंकवाद से भी अधिक खतरनाक मानते हैं। एक अनुमान के मुताबिक ग्लोबल वार्मिग से हर साल तीन लाख लोग शरणार्थी हो रहे हैं। नशीद कहते हैं कि सम्रु का जल स्तर बढ़ने से न केवल खाद्य संकट पैदा हो रहा है, बल्कि बड़े पैमाने पर लोगों के विस्थापन और बीमारियों की समस्या भी पैदा हो रही है। मालदीव ने जलवायु परिवर्तन के खतरों को बहुत पहल से महसूस करना शुरू कर दिया है। अब दुनिया के अन्य देशों को भी इस दिशा में कारगर कदम उठाने की जरूरत है। वरना आने वाले दिनों में यह उनके लिए भी इसी तरह खतरनाक हो सकता है, जसे आज मालदीव के लिए है।
जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम करने के लिए वह यह कहकर दुनिया का आह्वान करते हैं कि यदि मनुष्य चांद पर जा सकता है तो एकजुटता से कार्बन गैसों के उत्सर्जन को भी रोका जा सकता है, जो हम सबका समान दुश्मन है। कार्बन गैसों के उत्सर्जन से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को देखते हुए ही नशीद ने सत्ता संभालने के चार महीने बाद ही मालदीव को एक दशक के भीतर कार्बन-रहित और पवन व सौर ऊर्जा पर निर्भर देश बनाने की परिकल्पना रखी। उनका कहना है कि इस पर आने वाला खर्च उससे अधिक कतई नहीं होगा, जो मालदीव अब तक ऊर्जा के अन्य स्रोतों पर खर्च कर चुका है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर नशीद के प्रयासों को अब तक कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं। इस साल सितंबर में उन्हें ‘एज ऑफ स्टुपिडज् के वैश्विक प्रीमियर में ‘नॉट स्टुपिडज् का खिताब दिया गया। वहीं, टाइम मैगजीन उन्हें इस साल पर्यावरण की बेहतरी के लिए काम करने वाले दुनिया के चंद नेताओं में शुमार किया।
नशीद केवल जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम करने के लिए ही मुहिम नहीं चला रहे, बल्कि उन्होंने मालदीव में लोकतंत्र की स्थापना में भी अहम योगदान दिया। वह जेल गए, निर्वासन में रहे, लेकिन लोकतंत्र की लड़ाई के लिए हौसला नहीं छोड़ा। मई 1967 में एक व्यवसायी के घर जन्मे मोहम्मद नशीद की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा मजीदिया स्कूल से हुई। बाद में वह श्रीलंका के कोलंबो चले गए और वहां से ब्रिटेन। 1980 के आखिरी दशक में वह मालदीव लौटे और यहीं से शुरू हो गई उनकी लोकतांत्रिक लड़ाई व उनकी परेशानियों का दौर।
यहां उन्होंने अपनी पत्रिका ‘संगूज् निकाली और उसमें तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम के शासन को भ्रष्ट और मानव अधिकारों के उल्लंघन का दोषी बताते हुए उसके खिलाफ खोजी रिपोर्टों का प्रकाशन शुरू किया। जाहिर तौर पर अपनी इन गतिविधियों से वह सरकार की नजर में आ गए। पुलिस ने उनकी पत्रिका के दफ्तर पर छापे मारे और नशीद को गिरफ्तार कर लिया। तब उनकी उम्र केवल 23 साल थी। विभिन्न मौकों पर उन्हें 16 बार गिरफ्तार किया गया। छह वर्ष उन्होंने जेल में बिताए, जिनमें से 18 माह वह कालकोठरी में रहे। इस दौरान उनकी दो बच्चियां भी हुईं, लेकिन वह इस मौके पर पत्नी के साथ नहीं रह सके, जिसका अफसोस एक पिता और पति के नाते उन्हें आज भी है।
सरकार के दमन से नवंबर 2003 में उन्हें देश छोड़ना पड़ा। इस दौरान वह श्रीलंका और ब्रिटेन में रहे और वहां निर्वासन में ही मोहम्मद लतीफ के साथ मिलकर मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया। 2004 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें राजनीतिक शरणार्थी के रूप में स्वीकार किया। 18 महीने के स्वनिर्वासन के बाद अप्रैल 2005 में वह मालदीव लौटे और यहां अपनी पार्टी का प्रचार-प्रसार शुरू किया। जून में उनकी पार्टी को एक राजनीतिक दल के रूप में मान्यता भी मिल गई। उसी साल अगस्त में उनकी फिर गिरफ्तारी हुई। पहले कहा गया कि यह उनकी सुरक्षा के लिए किया गया, लेकिन बाद में सरकार ने उनके खिलाफ आतंकवाद निरोधी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया। लेकिन इस घटना से उन्हें जबरदस्त फायदा हुआ। जनता में उनकी लोकप्रियता बढ़ गई। लोग उनके लिए सड़कों पर उतर आए। अक्टूबर 2008 में देश में पहली बार राष्ट्रपति चुनाव में कई राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों ने शिरकत की और डेमोक्रेटिक पार्टी के नशीद विजयी रहे। 11 नवंबर को उन्होंने बतौर राष्ट्रपति मालदीव की सत्ता संभाली। नशीद महात्मा गांधी के घनघोर प्रशंसक हैं और मानते हैं कि आज की अधिकतर समस्याओं के, जिनमें पर्यावरण प्रदूषण भी शामिल है, हमें गांधी के रास्ते पर लौटना होगा।

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