सोमवार, 18 जनवरी 2010

भागवत प्रसाद गडकारी

नितिन गडकरी ठेठ संघ की पसंद वाले अध्यक्ष हैं। वे उन चार-पांच से बाहर के हैं, संघ प्रमुख भागवत जिनकी पतंग पहले ही काट चुके थे। युवा और कर्मठ होना उनकी सबसे बड़ी संपदा बताई जा रही है, लेकिन दिल्ली की राजनीति आसान नहीं है। बड़े-बड़े दिग्गजों के बीच उनका कितना जोर चलेगा, यह समय बताएगा। लेकिन एक बात तय है उन्हें संघ का मुंह जोहते रहना पड़ेगा।

हाल ही में हुए सांगठनिक फेरबदल में भाजपा को एक नया व युवा चेहरा दिया गया। नितिन गडकरी (52) के रूप में पार्टी को नया अध्यक्ष मिला, जो भाजपा के अब तक के सबसे युवा अध्यक्ष हैं। गडकरी ‘वेंटिलेटरज् पर चल रही भाजपा को स्वस्थ व जिताऊ बनाने में कहां तक कामयाब होंगे, यह तो आनेवाला समय बताएगा, पर इतना तो तय है कि भाजपा में आमूल-चूल परिवर्तन की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चाह पूरी हो गई है और अब पार्टी में संघ का दखल बढ़ेगा।
गडकरी संघ प्रमुख मोहन भागवत के करीबी और उनकी पसंद माने जाते हैं। इस साल सितंबर से ही पार्टी अध्यक्ष के रूप में उनके नाम की चर्चा थी। लोकसभा चुनाव में हार के बाद संघ प्रमुख भागवत कई बार पार्टी संगठन में रद्दो-बदल की आवश्यकता जता चुके थे। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ये भाजपा का अंदरूनी मामला है और संघ इसमें किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करने जा रहा। लेकिन भाजपा में संघ का दखल व प्रभाव सर्वविदित है। इसलिए अटकलें लगाई जा रही थीं कि पार्टी अध्यक्ष के रूप में जो भी कार्यभार संभालेगा, वह संघ का करीबी होगा। यह भी कहा गया कि वह दिल्ली से बाहर का नेता होगा। गडकरी की नियुक्ति से ये अटकलें सही साबित हुई हैं। उनकी साफ-सुथरी छवि ने भी अध्यक्ष पद के लिए उन्हें एक योग्य उम्मीदवार बनाया।
गडकरी महाराष्ट्र के नागपुर जिले से संबंध रखते हैं, जो संघ प्रमुख भागवत का कार्यक्षेत्र रहा है। उनका जन्म सत्ताइस मई, 1957 को नागपुर के देशास्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। राजनीतिक पारी की शुरुआत उन्होंने भाजपा के युवा मोर्चा और इसकी छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ की। इस बीच उनकी पढ़ाई भी जारी रही। उन्होंने महाराष्ट्र से ही एमकॉम, एलएलबी और डीबीएम की पढ़ाई की।
पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले 2004-2009 के बीच उन्होंने महाराष्ट्र भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवा दी। हालांकि उनके नेतृत्व में भाजपा हाल का विधानसभा चुनाव हार गई, लेकिन इससे उनके राजनीतिक भविष्य पर किसी तरह का संकट नहीं छाया, जसा कि राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया और उत्तरांचल में बीसी खंडूरी के साथ हुआ, बल्कि अध्यक्ष बनाकर एक तरह से उन्हें इनाम दिया गया। संभवत: यहां ‘हारने वाला ही जीतने वाला होता हैज् का फॉर्मूला अपनाया गया।
इससे पहले 1995 से 1999 के बीच वह महराष्ट्र की भाजपा-शिवसेना सरकार में मंत्री भी रहे। लोक कल्याण मंत्री के रूप में उन्होंने कई महत्वपूर्ण काम किए। इस दौरान उनकी कार्यप्रणाली से प्रतीत होता है कि वे आधुनिक तकनीक के हिमायती हैं। उन्होंने विभाग में आमूल-चूल बदलाव किए और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तर्ज पर विभागीय कर्मचारियों के लिए नियम लागू किए। निर्माण कार्यो में गुणवत्ता लाने के लिए उन्होंने अंतराष्ट्रीय स्तर की तकनीक अपनाने पर जोर दिया और इसके लिए एक समिति का भी गठन किया। उन्होंने पूरी तरह सरकार द्वारा नियंत्रित महाराष्ट्र स्टेट रोड डेवेलपमेंट कापरेरेशन (एमएसआरडीसी) का गठन किया, जिसने मुंबई में कई फ्लाईओवर बनाए। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों को सड़क मार्ग से जोड़ने को प्रमुखता दी, ताकि विकास की गाड़ी दूर-दराज के गांवों में भी पहुंच सके।
इस क्षेत्र में उनके विशेष कार्यो को देखते हुए बाद में कें्र की भाजपा सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय ग्रामीण सड़क विकास समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया। विस्तृत अध्ययन व कई बैठकों के बाद गडकरी ने कें्र को इस बारे में अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क संपर्क के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना शुरू की गई। सड़क निर्माण के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें हाइवे वाले गडकरी भी कहा जाता है। वह विदर्भ आंदोलन के भी हिमायती रहे हैं।
गडकरी की पहचान केवल राजनेता के रूप में नहीं रही है, बल्कि उद्योगपति और कृषिविज्ञ के रूप में भी रही है। वह कई कंपनियों के संस्थापक व अध्यक्ष रहे हैं। वहीं, कृषि के क्षेत्र में आधुनिक तकनीक अपनाने पर उन्होंने जोर दिया, तो सौर ऊर्जा, जल प्रबंधन के क्षेत्र में भी कई परियोजनाएं लागू की। हाल में उन्होंने कई देशों के साथ फलों का निर्यात शुरू किया है।
हालांकि गडकरी के साथ ये उपलब्धियां हैं, लेकिन अध्यक्ष के रूप में उनके सामने कहीं अधिक चुनौतियां हैं। महाराष्ट्र सरकार के मंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रूप में अब तक उनका कार्यक्षेत्र मुख्यत: मुंबई और नागपुर तक ही सिमटा रहा। लेकिन अब उनकी जिम्मेदारी देशव्यापी हो गई है। पार्टी को एकबार फिर से खड़ा करना, खासकर उत्तर भारत के कई प्रमुख राज्यों में, आसान नहीं होगा। इसके अलावा, वे भाजपा का कोई राष्ट्रीय चेहरा नहीं हैं और न ही राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं। फिर, पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। ऐसे में उन्हें इन नेताओं का असंतोष व असहयोग ङोलना पड़ सकता है। अब तक उन्होंने कोई विधानसभा या लोकसभा चुनाव नहीं जीता है, यह बात भी उनके खिलाफ जा सकती है। इसलिए कदम-कदम पर उन्हें संघ के सहयोग व समर्थन की आवश्यकता होगी।