सोमवार, 18 जनवरी 2010

लोकतंत्र की सयानी बेटी

शेख हसीना बड़ी जीवट वाली महिला हैं। बेहद जुझारू। अपने यशस्वी पिता शेख मुजीबुर्रहमान से राजनीति विरासत में पाई। लेकिन उन्हें काफी संघर्ष के बाद सत्ता मिली। उनका संघर्ष बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थापना को लेकर भी था। इसलिए भी उन्हें लोकतंत्र की बेटी कहा जाता है। हाल ही में उन्हें इंदिरा गांधी शांति सम्मान दिया गया।

बांग्लादेश में लोकतंत्र की स्थापना के लिए अगर किसी नेता का नाम लिया जाएगा, तो वह शेख हसीना होंगी। शायद यही वजह है कि उन्हें न केवल बांग्लादेश में, बल्कि पूरी दुनिया में ‘लोकतंत्र की बेटीज् कहा जाता है। शेख हसीना, बांग्लादेश की मौजूदा प्रधानमंत्री और वहां के प्रमुख राजनीतिक दल अवामी लीग की अध्यक्ष हैं, जो पिछले करीब तीन दशक से पार्टी का नेतृत्व कर रही हैं।
लोकतंत्र की स्थापना के लिए बांग्लादेश में उन्होंने जो लंबी लड़ाई लड़ी, उसने उनकी छवि जुझारू नेता के रूप में स्थापित की। बीबीसी ने उन्हें ‘आयरन लेडीज् कहा, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सालों निर्वासन में रहीं। लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए हमेशा लड़ती रहीं, लेकिन समझौता नहीं किया। वे गरीबों के हक के लिए भी उतनी ही संवेदनशील हैं और भ्रष्टाचार को भी समाप्त करना चाहती हैं। उन्हें दो बार सत्ता मिली। पहली बार 1996 से 2001 तक और दूसरी बार 2008 में, जिसके बाद वे अब तक सत्तासीन हैं। अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने जो भी योजनाएं लागू कीं, उनकी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में खूब चर्चा हुई। हालांकि कुछ विवादों ने भी उनका पीछा नहीं छोड़ा। जनता ने कभी सिर-आंखों पर बिठाया तो कभी पटखनी भी दी। उन पर भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी के आरोप भी लगे। लेकिन लोकतांत्रिक ताकतों को मजबूत करने की उनकी मुहिम ने ऐसे आरोपों को काफी हद तक दबा दिया।
राजनीति में उन्होंने अपने पिता शेख मुजीबुर्रहमान के नाम को खूब भुनाया और बार-बार दोहराया कि बांग्लादेश की नींव रखने वाले शेख मुजीबुर्रहमान ने वहां जिस भयमुक्त और लोकतांत्रिक समाज की कल्पना की थी, उसकी स्थापना के लिए वे हर संभव कोशिश करेंगी, भले इसकी कीमत उन्हें भी पिता की तरह जान देकर क्यों न चुकानी पड़े। जाहिर तौर पर हसीना की इस बेबाकी और प्रतिबद्धता ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा और वह एक ताकतवर नेता के रूप में उभरने लगीं।
स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव के लिए उन्होंने बांग्लादेश में केयर टेकर गवर्नमेंट का सुझाव दिया, जो राजनीतिक विश्लेषकों को खूब भाया। उन्होंने इसे आने वाले दिनों में तीसरी दुनिया के अन्य देशों में भी चुनाव प्रक्रिया के लिए एक बेहतर व अनुकरणीय कदम बताया। भारत के साथ संबंधों को लेकर भी शेख हसीना का रवैया वहां के अन्य राजनीतिक दलों से अलग रहा है। वे और उनकी पार्टी ने हमेशा भारत के साथ मधुर संबंधों को तवज्जो दी। यही वजह है कि जब-जब बांग्लादेश में अवामी लीग की सरकार बनी, भारत में उम्मीद की गई कि अब वहां भारत विरोधी ताकतों पर अंकुश लग सकेगा। पड़ोसी पाकिस्तान के अलावा बांग्लादेश ही है, जहां भारत विरोधी ताकतें सबसे अधिक सक्रिय हैं।
अट्ठाइस सितंबर, 1947 को गोपालगंज जिले के छोटे से गांव तुंगीपारा में जन्मी हसीना ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र नेता के रूप में की। पांच भाई-बहनों में हसीना सबसे बड़ी थीं। गरीबों व जरूरतंदों के लिए स्नेह की भावना उन्हें मां बेगम फजीलतुन्नेसा से विरासत में मिली। साल 1968 में परमाणु वैज्ञानिक डॉक्टर एमए वाजेद से उनका विवाह हुआ। इस बीच उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। 1973 में ढाका विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक किया। राजनीतिक सूझबूझ व सक्रियता उन्हें विरासत में मिली थी। कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति में वे खूब सक्रिय रहीं। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। 1971 में बांग्लादेश के गठन के बाद राजनीति में उनकी भागीदारी काफी कम रही। समझा जा रहा था कि उनके भाई शेख कमल ही पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाएंगे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। पं्रह अगस्त, 1975 को एक सैन्य व्रिोह में शेख मुजीबुर्रहमान सहित हसीना के तीनों भाइयों और मां की हत्या कर दी गई। तब हसीना और उनकी बहन पश्चिमी जर्मनी में छुट्टियां मना रही थीं। बांग्लादेश की तत्कालीन सरकार ने देश में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। पहले ब्रिटेन में और फिर भारत में उन्होंने निर्वासित जीवन बिताया। इस बीच वे अवामी लीग की मजबूती के लिए काम करती रहीं। सत्रह मई, 1981 को उन्हें बांग्लादेश लौटने की अनुमति मिली। तब देश में सैन्य शासन ही था।
लंबे समय के सैन्य शासन के बाद वर्ष 1991 में वहां पहली लोकतांत्रिक चुनाव हुए। लेकिन हसीना की पार्टी दूसरे नंबर पर रही। बांग्लादेश नेशनललिस्ट पार्टी पहले नंबर पर रही और उसकी नेता खालिदा जिया देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। हसीना ने बीएनपी पर चुनाव में धांधली का आरोप लगाया। उन्होंने अगला चुनाव केयर टेकर गवर्नमेंट की देखरेख में करवाने और इसके लिए संविधान में प्रावधान करने की मांग रखी। काफी विरोध के बाद बीएनपी सरकार ने संविधान में केयर टेकर गवर्नमेंट का प्रावधान किया। उसी साल जून में न्यायाधीश हबीबुर्रहमान केयर टेकर गवर्नमेंट के मुखिया बने। उनके नेतृत्व में चुनाव हुए। 299 सदस्यीय संसद में अवामी लीग को 146 सीट मिली। कुछ अन्य दलों के सहयोग से उसकी सरकार बन गई और हसीना प्रधानमंत्री बनीं।
अपने इस कार्यकाल के दौरान हसीना ने कई महत्वपूर्ण काम किए। उनकी सरकार की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि भारत के साथ फरक्का बांध समझौता रही। इसके बाद उन्होंने देश के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में जनजातीय व्रिोहियों के साथ शांति समझौता किया, जिससे व्रिोही गतिविधियों में कुछ हद तक कमी आई। गरीबों को छत मुहैया कराने के लिए उन्होंने ‘आश्रयणज् योजना शुरू की।
इस बीच उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण को बढ़ावा देने के आरोप भी लगे। विपक्ष ने इन मुद्दों को खूब भुनाया। शायद यही वजह रही कि वर्ष 2001 में जब चुनाव हुए तो अवामी लीग केवल 62 सीटों पर सिमट गई, जबकि बीएनपी के नेतृत्व में चार दलों के गठबंधन को दो-तिहाई बहुमत मिला। वर्ष 2007 में बांग्लादेश में परिस्थतियां बदलीं, वहां आपातकाल लगा दिया गया और चुनाव स्थगित कर दिए गए। तब हसीना अमेरिका में थीं। अंतरिम सरकार ने उनके देश लौटने पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन सरकारी विरोध के बावजूद सात मई, 2007 को वह बांग्लादेश आईं। हजारों समर्थकों ने हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया। पुलिस ने उन्हें घर में ही नजरबंद कर दिया। इस बीच नवंबर, 2008 में वहां चुनाव हुए, जिसमें अवामी लीग को 230 सीटें मिली और हसीना एकबार फिर प्रधानमंत्री बनीं।
शेख हसीना ने छह साल भारत में भी गुजारे। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और उनके परिवार में काफी घनिष्ठता है। प्रणव दा की पत्नी उनकी बेहद करीबी मित्र हैं। खास मौकों पर वे अब भी फोन करने से नहीं चूकतीं, जबकि प्रणव मुखर्जी उनसे कहते हैं कि अब आप प्रधानमंत्री हैं और प्रोटोकॉल भी कोई चीज होती है। जवाब में उनका कहना होता है कि उससे ज्यादा महत्वपूर्ण प्रणव दा आप हैं।