सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

बवाल में चटवाल

संत सिंह चटवाल को पद्मश्री मिलने पर काफी बवाल है। बिल और हिलेरी क्लिंटन के साथ अक्सर दिखने वाले चटवाल को लोग उनकी अमीरी औरे बेटे की शाही शादी के लिए भी जानते हैं। यह भी सच्चाई है कि उन्होंने अपना साम्राज्य अपनी मेहनत से खड़ा किया। एक बेहद छोटी शुरुआत से शानदार समृद्धि की उनकी यात्रा सफलता की एक बड़ी कहानी है। पर विवाद और घोटाले भी उनसे जुड़े हुए हैं।

संत सिंह चटवाल, भारतीय मूल के अमेरिकी व्यवसायी। बॉम्बे पैलेस रेस्तरां की श्रंखला और हैम्पशायर होटल व रिजार्ट के मालिक। इस बार गणतंत्र दिवस पर उन्हें श्रेष्ठ नागरिक सम्मान में से एक पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया। अमेरिका सहित दुनिया के अन्य देशों में ‘इंडियन करी के बादशाहज् नाम से मशहूर चटवाल ने विदेशों में भारतीय व्यंजन की खूब धाक जमाई। उनके होटलों व रेस्तरां में लोग भारतीय व्यंजन का खूब स्वाद ले रहे हैं। भारत के कई शहरों में भी उनके होटल व रेस्तरां हैं, जहां लोगों को स्वादिष्ट भोजन परोसा जाता है। कुल मिलाकर, करोड़ों-अरबों का व्यवसाय। लेकिन उनके पद्मश्री ने कई के मुंह का जायका बिगाड़ दिया है।
लेकिन चटवाल की शख्सियत का एक अन्य पहलू भी है और वह बेहद विवादास्पद है। कई ऐसे मामले हैं, जिन्होंने चटवाल को विवादों में घेरा। क्लिंटन दंपति से उनके रिश्ते की बात हो या बेटे की सबसे खर्चीली शादी का मामला या फिर बैंकों से ण लेकर धांधली के आरोप, सबने उनकी विवादित छवि ही पेश की। लेकिन इन सबका उनके व्यवसाय पर कोई फर्क नहीं पड़ा। वह दिन-दूना रात-चौगुना बढ़ता ही रहा। चटवाल की विवादास्पद छवि की वजह से ही उन्हें पद्म पुरस्कार दिए जाने पर विवाद पैदा हुआ। भाजपा ने राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उनसे पुरस्कार वापस लेने की मांग की तो कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भी पूरी प्रक्रिया से दूरी बनाए रखी।
चटवाल का जन्म 1946 में रावलपिंडी में हुआ था, जो आज पाकिस्तान का हिस्सा है। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के फरीदकोट में उनके पिता की एक छोटी सी चाय की दुकान थी। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। जाहिर तौर पर एक सफल व्यवसायी के रूप में चटवाल को यह कामयाबी विरासत में नहीं मिली। यह सब उन्होंने अपनी मेहनत से हासिल किया। हां, पिता एक छोटे से व्यवसायी थे और इसका लाभ उन्हें इतना जरूर मिला कि विरासत में उन्हें व्यवसाय की बारीकियों को जानने-समझने व सीखने का मौका मिला। अपनी इस जानकारी का इस्तेमाल उन्होंने विदेशों में अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए किया।
बचपन से ही चटवाल को ऊंची व गगनचुंबी इमारतें लुभाती थीं। वे ऊंची उड़ान भरने का सपना देखते थे। उनका सपना तब साकार हुआ, जब वे भारतीय नौसेना में पायलट बने। लेकिन यह उनके लिए काफी नहीं था। वे और ऊंची उड़ान भरना चाहते थे। उनका सपना कुछ अलग करने का था। अपने सपनों को उड़ान देने के लिए चटवाल ने 1970 के दशक में विदेश का रुख किया था। सबसे पहले वे पूर्वी अफ्रीका के देश इथियोपिया गए। वहां उन्होंने मेहमान नवाजी के क्षेत्र में अपना नया करियर शुरू किया। उन्होंने ‘उमर खय्यामज् नाम से रेस्तरां खोला और लोगों को भारतीय व्यंजन परोसना शुरू किया, जो उन्हें खूब रास आया। लेकिन उनका व्यवसाय यहां अधिक दिनों तक टिक नहीं पाया। 1974 में इथियोपिया के सम्राट हेल सेलसी का तख्ता पलट हो गया और चटवाल को वह देश छोड़ना पड़ा। अब तक उन्होंने जो भी बचत की थी, उसे लेकर वे कनाडा रवाना हो गए और वहां मांट्रायल में रेस्तरां खोला। वहां भारतीय व्यंजन परोसने के बजाए उन्होंने लोगों को ऐसा व्यंजन परोसना शुरू किया, जो भारतीय व फ्रांसीसी खानपान का मिलाजुला रूप था।
लेकिन चटवाल इससे भी बड़ा कुछ करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अमेरिका का रुख किया। 1979 में वे न्यूयॉर्क गए और वहां पहला बॉम्बे पैलेस रेस्तरां खोला। धीरे-धीरे उन्होनें अमेरिका के कई शहरों में इसकी शाखाएं खोली। आज अमेरिका के बेवर्ली हिल, शिकागो, डेनेवर, मियामी, ह्यूस्टन, सैन फ्रांसिस्को व वाशिंगटन डीसी के अलावा टोरंटो, वैनकोवर, बैंकाक, बुडापेस्ट, कुआलालंपुर, हांगकांग, लंदन, मांट्रायल और नई दिल्ली में भी इसकी कई शाखाएं हैं।
अमेरिका में होटल व्यवसाय स्थापित करने के दौरान चटवाल की नजदीकियां क्लिंटन परिवार से बढ़ीं। क्लिंटन परिवार से उनकी नजदीकियों ने कई विवादों को जन्म दिया। कहा गया कि राष्ट्रपति रहते हुए बिल क्लिंटन ने उन्हें कर भुगतान सहित कई मामलों में राहत पहुंचाई, जिसके बदले चटवाल ने क्लिंटन परिवार को खूब वित्तीय मदद दी। साल 2007 में चुनाव अभियान के दौरान राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार व पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन के लिए उन्होंने 50 लाख अमेरिकी डॉलर का फंड इकट्ठा किया।
वे विलियम जे. क्लिंटन फाउंडेशन के ट्रस्टी भी हैं, जो स्वास्थ्य सुरक्षा, आर्थिक सशक्तिकरण के लिए काम करती है। जाहिर तौर पर फाउंडेशन के लिए उन्होंने खूब वित्तीय संसाधन जुटाए। क्लिंटन परिवार से उनकी नजदीकियों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे उनके घर अक्सर डिनर व लंच के लिए आते हैं। बिल व हिलेरी क्लिंटन की कई यात्राओं में चटवाल उनके साथ भारत आए। जब हिलेरी अमेरिका की विदेश मंत्री बनीं, तो यहां तक कहा गया कि चटवाल उप विदेश मंत्री बन सकते हैं। इसके अलावा, जॉन कैरी, चार्ल्स शूमर, नैन्सी पेलोसी, जोसेफ क्राउली से भी उनके अच्छे संबंध हैं। आरोप है कि व्यक्तिगत हितों के लिए उन्होंने अपने राजनीतिक संपर्को का खूब इस्तेमाल किया।
उनसे जुड़ा यह एकमात्र विवाद नहीं है। उन पर लिंकन सेविंग्स, फर्स्ट न्यूयॉर्क बैंक फॉर बिजनेस, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सहित कई अमेरिकी व भारतीय बैंकों से ण लेकर गलत आधार पर स्वयं को दिवालिया घोषित करने का आरोप है। भारतीय बैंकों से धांधली के मामले में सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार भी किया, लेकिन वे बच निकलने में कामयाब रहे। अमेरिका के कई समाचार-पत्रों ने इन मुद्दों को प्रमुखता से छापा। चुनाव अभियान के दौरान ये खबरें हिलेरी क्लिंटन के लिए शर्मिदगी का कारण बनीं, तो भारत में यह कहते हुए बुद्धिजीवियों और राजनीतिक दलों के नेताओं ने उनकी आलोचना की कि इससे विदेशों में भारतीयों की गलत छवि पेश हो रही है। 1980 के दशक में अमेरिका के प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग ने बॉम्बे पैलेस श्रंखला के संदर्भ में गलत दस्तावेज पेश करने के लिए उन पर आजीवन किसी सार्वजनिक कंपनी का निदेशक या अधिकारी बनने का प्रतिबंध लगा दिया।
बेटे विक्रम चटवाल की शादी के आयोजन को लेकर भी वे सुर्खियों में रहे। फरवरी, 2006 में विक्रम की शादी भारतीय मॉडल प्रिया सचदेव से हुई। विवाह समारोह का आयोजन दिल्ली में हुआ था, जिसमें लक्ष्मी मित्तल, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन सहित कई बड़ी हस्तियां शामिल थीं। शादी समारोह की कवरेज के लिए विभिन्न देशों से 30 भाषाओं के सौ पत्रकार बुलाए गए थे। इसे ‘सदी की शादीज् का नाम देते हुए ‘भारत का अबतक का सबसे महंगा विवाह समारोहज् कहा गया।
इन विवादों से अलग चटवाल ने अमेरिका में अनिवासी भारतीयों के हितों की बात भी उठाई। सभी आरोपों से अलग उनका यह भी दावा रहा है कि अमेरिका में अपने राजनीतिक संपर्को का इस्तेमाल उन्होंने व्यक्तिगत हितों के लिए नहीं, बल्कि भारतीय समुदाय और अमेरिकियों के बीच नजदीकियां व सामंजस्य स्थापित करने में किया। शायद यही वजह रही कि उन्हें पंजाब सरकार ने अप्रैल, 1999 में उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ खालसाज् सम्मान से नवाजा। यह सम्मान पाने वाले वे भारतीय मूल के एकमात्र अमेरिकी हैं।